श्रीराधारानी और श्रीकृष्ण की लीलाएं केवल प्रेम की सीमित परिभाषाओं में नहीं बाँधी जा सकतीं। वे दिव्य तत्वों से बनी वह रहस्यमयी रसधारा हैं, जो आत्मा को उसके परम लक्ष्य तक ले जाती हैं। श्री राधा और श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला में न केवल भावनाओं का चरम रूप होता है, बल्कि गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य भी छिपा होता है। आज हम जिस लीला पर चर्चा कर रहे हैं, वह है – जब श्रीदामा ने राधारानी से विरोध किया और राधारानी ने क्रोधवश उन्हें श्राप दे दिया और श्री राधारानी को श्रीदामा का श्राप क्यों मिला?
यह कथा हमें बताती है कि प्रेम, त्याग, विरह, क्रोध और श्राप – ये सभी दिव्यता से भरपूर हैं और भगवान की लीलाओं का अभिन्न अंग हैं।
एकांत सेवा में श्री राधा और श्री कृष्ण की अनुपस्थिति
एक बार की बात है, जब श्रीराधारानी महावन में एकांत स्थान पर श्रीकृष्ण की सेवा में लीन थीं। उनकी भक्ति इतनी प्रगाढ़ थी कि वे अपनी देह की चेतना खो बैठीं। वे अपने प्राणवल्लभ के लिए तन-मन से समर्पित थीं। इसी अवस्था में, श्रीकृष्ण चुपचाप वहाँ से चले गए और विरजा नामक गोपी से मिलने के लिए गए, जो उन्हें बहुत प्रिय थीं।
विरजा एक दिव्य, किशोरी-स्वरूपा, परम सुंदरी और रत्नों से सजी हुई गोपी थीं। वे भी श्रीकृष्ण की सेवा में अत्यंत लीन थीं। जब वे कृष्ण को अपने पास पाकर आनंदित हुईं, तब उन्होंने तन-मन से उनकी सेवा करना प्रारंभ किया।
श्री राधारानी का वियोग और क्रोध
जब श्रीराधा की चेतना लौटी, तो उन्होंने देखा कि कृष्ण वहाँ नहीं हैं। उनके अंतर में कंप होने लगा। उन्होंने सखियों से पूछा और ज्ञात हुआ कि श्रीहरि विरजा के कुंज में चले गए हैं। यह सुनते ही राधारानी का हृदय जलने लगा। वह कृष्ण के वियोग से बिलख उठीं और उनका मुख क्रोध से लाल हो गया।
वे बोलीं, “श्रीहरि तो विष के घड़े जैसे हैं – बाहर से अमृत, लेकिन भीतर विष! वे बहुत टेढ़े हैं। मैं स्वयं जाकर देखना चाहती हूँ कि वे किस प्रकार विरजा की सेवा ले रहे हैं।”
उनकी सखियाँ चिंतित थीं, लेकिन राधा ने आदेश दिया। सभी गोपियाँ उनके साथ चलने को तैयार हो गईं।
श्री राधारानी की दिव्य रथ की यात्रा
श्री राधारानी के लिए एक विशेष रथ लाया गया। वह कोई साधारण रथ नहीं था। सौ योजन ऊँचाई, दस योजन चौड़ाई वाला यह रथ करोड़ों रत्नों से जड़ा था। इसमें लाखों कमरे, सैकड़ों सरोवर, सुवर्ण स्तंभ, सुंदर झंडियाँ, मनोहर ध्वजाएँ और मणियों से बनी सीढ़ियाँ थीं। वह रथ स्वर्ण घंटियों की ध्वनि से गुंजायमान था। पूरे रथ को चंदन, कस्तूरी, अगुरु, कुंकुमा की सुगंध से अभिषिक्त किया गया था।
राधा उस भव्य रथ पर सवार होकर अपनी सखियों के साथ विरजा के कुंज की ओर प्रस्थान करती हैं।
द्वारपाल श्रीदामा और श्री राधारानी का सामना
विरजा के कुंज के द्वार पर एक सुंदर गोप पहरा दे रहा था – श्रीदामा। वह श्रीकृष्ण का परम प्रिय सेवक था। जब राधा वहाँ पहुँचीं, उन्होंने क्रोधित होकर कहा, “हे व्यभिचारी के सेवक! हटो मेरे मार्ग से!”
श्रीदामा ने विनम्रता से रोकने का प्रयास किया, लेकिन राधारानी के साथ आईं गोपियाँ क्रोध से भर गईं और बलपूर्वक श्रीदामा को हटा दिया। भीतर प्रवेश करते ही राधा ने देखा कि श्रीकृष्ण वहाँ नहीं हैं। कृष्ण, राधा के आने की आहट पाकर अंतर्ध्यान हो गए थे।
विरजा का नदी बन जाना
जब विरजा ने देखा कि कृष्ण चले गए हैं, तो उन्होंने अपने योगबल से शरीर त्याग दिया और एक अद्भुत नदी में परिणत हो गईं। वह नदी “विरजा नदी” के नाम से जानी गई, जो गोलोक की परिक्रमा करती है। उसका जल स्वच्छ, विशाल और दिव्य था।
कृष्ण विरजा के वियोग में तट पर जाकर रोने लगे। उन्होंने पुकारा, “हे मेरी प्रिय! मेरे पास लौट आओ। मैं तुम्हें सभी नदियों की अधिष्ठात्री देवी बनाता हूँ।” भगवान की प्रार्थना सुनकर विरजा पुनः प्रकट हुईं। उनका स्वरूप राधा के समान दिव्य था। उनके सौंदर्य का वर्णन शब्दों से परे था।
विरजा के पुत्र और सात महासागर
कृष्ण के स्पर्श से विरजा को गर्भधारण हुआ और सौ दिव्य वर्षों के पश्चात उन्होंने सात पुत्रों को जन्म दिया। किंतु उनके सबसे छोटे पुत्र को अन्य भाइयों ने परेशान किया, जिससे वह रोता हुआ विरजा के पास आया।
विरजा ने अपने पुत्र को इस कारण श्राप दे दिया – “तुम्हारा जल खारा हो जाएगा।” अन्य पुत्रों को भी श्राप मिला कि वे पृथ्वी पर जाएँ और अलग-अलग द्वीपों में रहें।
इस प्रकार, सात समुद्र अस्तित्व में आए –
इनसे सात समुद्र बने:
- लवण सागर (खारा जल)
- इक्षु सागर (गन्ने का रस)
- सुर-समुद्र (मदिरा)
- घेता (घी)
- दधि-समुद्र (दही)
- दुग्ध-समुद्र (दूध)
- स्वादुदक सागर (मीठा जल)
ये सभी विरजा की संतानों के रूप में पृथ्वी पर स्थित हुए।
श्री राधारानी का क्रोध और गोपियों का विरोध
इस बीच, श्रीकृष्ण राधारानी के घर लौटे। लेकिन गोपियाँ द्वार पर खड़ी थीं और उन्होंने उन्हें भीतर आने नहीं दिया। राधा ने भीतर से कठोर वचन कहे – “तुम मुझे छोड़कर विरजा के पास गए? अब तुम्हें मेरे घर आने का कोई अधिकार नहीं है।”
गोपियाँ कृष्ण का उपहास करने लगीं, “हे नदी के पति! अब तुम्हें नदी का रूप भी लेना पड़ेगा ताकि संगति हो सके।” कुछ गोपियाँ हँसी, कुछ गंभीर थीं। राधारानी का क्रोध थमने का नाम नहीं ले रहा था।
श्रीदामा और श्री राधारानी का विवाद
कृष्ण जब राधारानी के घर लौटे, तो उन्हें गोपियों ने अंदर आने से मना कर दिया। राधा ने क्रोधपूर्वक उन्हें बाहर से डांटा और तीव्र वचनों से उन्हें चोट पहुँचाई। श्रीदामा यह सब देख रहे थे और उन्होंने राधा से कहा:
“हे देवी! आप जिसे व्यभिचारी कह रही हैं, वे तो समस्त सृष्टि के मूल कारण, ब्रह्मा, शिव, और अनंत के पूज्य हैं!”
उन्होंने कृष्ण की महिमा बताई और कहा कि राधा को इस प्रकार भगवान को अपमानित नहीं करना चाहिए।
उसने कृष्ण की महिमा का विस्तार से वर्णन किया, लेकिन राधा इस पर और अधिक क्रोधित हो गईं।
श्री राधारानी ने क्रोधवश श्रीदामा को श्राप दे दिया
श्री राधारानी यह सब सुनकर और अधिक क्रोधित हो गईं और श्रीदामा को श्राप दे दिया:
“तू एक राक्षस बन जाएगा और गोलोक से बाहर जाएगा।”
राधा ने काँपते होठों और बिखरे केशों के साथ श्रीदामा को श्राप दिया, “अब से तू राक्षस बन जा। गोलोक छोड़कर पातालगामी बन जा। मेरा श्राप तुझे मनुष्य योनि में फेंक देगा।”
श्री राधारानी को श्रीदामा का श्राप
इसके उत्तर में श्रीदामा ने श्री राधा को भी श्राप दिया:
“तुम मनुष्य योनि में जन्म लोगी, जहाँ लोग तुम्हें अभिमन्यु की पत्नी के रूप में जानेंगे। तुम श्रीकृष्ण से अलग रहोगी और फिर अंत में पुनः एकाकार हो जाओगी।”
श्रीदामा ने भी राधा को उत्तर दिया, “हे राधा! तुम मनुष्य की भाँति क्रोधित हुई हो, अतः तुम्हें भी पृथ्वी पर जन्म लेना होगा। वहाँ तुम श्रीकृष्ण से पुनः मिलोगी, लेकिन सौ वर्षों तक उनसे वियोग भोगोगी। अंत में फिर गोलोक लौटोगी।”
भविष्यवाणी और श्रीदामा का पतन
श्रीदामा पृथ्वी पर शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्मे। वह कृष्ण के हाथों अंततः मारे गए और फिर पुनः गोलोक लौटे। वहीं राधा ने वृषभानु की पुत्री रूप में जन्म लिया और श्रीकृष्ण के साथ पृथ्वी पर लीलाएँ कीं।
पृथ्वी पर लीला का आरंभ
श्रीदामा ने श्रीकृष्ण को इस घटना की जानकारी दी और रोते हुए कहा, “मेरे प्रभु! मुझे अपने चरणों से वंचित मत कीजिए।” कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया, “तुम शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्म लोगे, लेकिन महादेव द्वारा मारे जाने के बाद वापस गोलोक आओगे।”
वहीं राधारानी भी पृथ्वी पर वृषभानु की पुत्री के रूप में जन्म लेंगी और श्रीकृष्ण की संगिनी बनकर ब्रज में लीला करेंगी।
इस कथा से क्या सीख मिलती है?
- प्रेम और क्रोध दोनों ही भगवान की लीलाओं में स्थान पाते हैं।
- राधारानी का प्रेम पार्थिव नहीं, बल्कि पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।
- भगवान की माया, योगबल और लीला हमारे तर्क से परे है।
- श्राप भी ईश्वरीय लीला का भाग है, जो सृष्टि को गति देता है।
निष्कर्ष
यह कथा केवल एक श्राप या क्रोध की घटना नहीं है। यह उस प्रेम की पराकाष्ठा है, जिसमें हर भाव – चाहे वह क्रोध हो या वियोग – अंततः भगवान की लीला का ही विस्तार है। राधारानी का क्रोध, श्रीदामा का उत्तर, विरजा की नदी में परिणति और समुद्रों की उत्पत्ति – यह सब किसी अलौकिक नाटक के दृश्य हैं, जो हमें यह सिखाते हैं कि ईश्वर की लीला में कोई भी घटना व्यर्थ नहीं होती।
हर शब्द, हर भाव, हर निर्णय – सभी कुछ पूर्वनियोजित और दिव्य है।
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FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1. श्रीदामा कौन थे और उनका राधारानी से क्या संबंध था?
उत्तर: श्रीदामा श्रीकृष्ण के परम भक्त और सेवक थे। वे विरजा के कुंज के द्वारपाल थे और राधा से द्वार पर टकरा गए, जिसके कारण राधा ने उन्हें श्राप दे दिया।
Q2. राधारानी ने श्रीदामा को क्या श्राप दिया?
उत्तर: राधारानी ने उन्हें श्राप दिया कि वे राक्षस योनि में जन्म लें और गोलोक से गिर जाएँ।
Q3. श्रीदामा ने राधारानी को क्या श्राप दिया?
उत्तर: उन्होंने राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया, जहाँ वे श्रीकृष्ण से सौ वर्षों तक वियोग भोगेंगी।
Q4. विरजा नदी की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर: विरजा ने श्रीकृष्ण के विरह में शरीर त्याग दिया और योगबल से नदी बन गईं, जो अब विरजा नदी के नाम से जानी जाती है।
Q5. राधारानी का पृथ्वी पर कौन-सा रूप है?
उत्तर: राधारानी पृथ्वी पर राजा वृषभानु की पुत्री के रूप में प्रकट हुईं और श्रीकृष्ण की संगिनी बनीं।
(Scriptural References):
- ब्रह्मवैवर्त पुराण (Brahma-vaivarta Purana) – राधा-कृष्ण और गोलोक से जुड़ी कथा का प्रमुख स्रोत।
- गर्ग संहिता (Garga Samhita) – राधारानी, श्रीदामा, विरजा आदि के वर्णन मिलते हैं।
- पद्म पुराण, नारद पुराण, स्कन्द पुराण – श्रीकृष्ण और राधा से संबंधित कथाओं के प्रमाण।
- भागवत पुराण (भागवतम्) – विशेषकर गोपियों, रासलीला और अवतार-तत्व के वर्णन हेतु।