श्रीकृष्ण, राधा, विरजा और श्रीदामा से जुड़ी अद्भुत कथा 

Neha Pandey

राधारानी की एकांत सेवा 

श्रीराधा महावन में श्रीकृष्ण की सेवा में मग्न थीं। 

कृष्ण अचानक विरजा के कुंज चले गए। राधा को यह बात पता चली और उनका हृदय चीत्कार कर उठा। 

राधा का क्रोध और निर्णय 

राधा बोलीं – "श्रीहरि विष के समान हैं!" 

उन्होंने रत्नजटित दिव्य रथ मँगवाया और सखियों सहित विरजा के कुंज की ओर चलीं। 

दिव्य रथ का वर्णन 

सैकड़ों कमरों वाला, रत्नों से जड़ा 

घोड़ों की गति से उड़ता वह रथ अद्भुत था। रथ के भीतर बग़ीचे, झीलें, पलंग, झंडियाँ, और घंटियाँ थीं।

श्रीदामा से टकराव 

राधा जब विरजा के द्वार पहुँचीं, तो श्रीदामा ने उन्हें रोका। 

राधा ने कहा – "हे व्यभिचारी के सेवक! हटो मेरे मार्ग से!" गोपियों ने श्रीदामा को बलपूर्वक हटा दिया। 

विरजा की नदी में परिणति 

कृष्ण अंतर्ध्यान हो गए। 

विरजा ने शरीर त्याग दिया और योगबल से एक दिव्य नदी बन गईं – विरजा नदी। 

विरजा के पुत्र और महासागरों की उत्पत्ति - विरजा ने 7 पुत्रों को जन्म दिया। क्रोध में उन्हें श्राप दिया और वे 7 महासागरों के रूप में धरती पर प्रकट हुए। 

राधा का क्रोध चरम पर 

राधा ने कृष्ण को डाँटा: 

"हे विराजकांत! अब मेरे पास मत आओ!" गोपियाँ बोलीं – "तुम नदी के पति बनो, वहीं रहो!" 

"हे श्रीदामा! अब तू राक्षस बन और गोलोक से गिर जा।" 

क्रोध में राधा बोलीं – 

श्री राधारानी का श्राप 

श्री राधारानी को श्रीदामा का श्राप : श्रीदामा ने कहा: "हे राधा! तुम कृष्ण की अपमान कर रही हो, तुम्हें मनुष्य रूप में जन्म लेना होगा और सौ वर्षों तक वियोग सहना होगा।" 

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