चैत्र माह में शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है, जिसमें माता शीतला की पूजा की जाती है और बासी भोजन का भोग अर्पित किया जाता है। इस व्रत की विशेष धार्मिक मान्यता होती है, और मान्यता है कि श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करने पर आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में समृद्धि आती है। होली के आठ दिन बाद आने वाली यह तिथि चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होती है, जब महिलाएं पूरे श्रद्धा भाव से उपवास रखती हैं। इस वर्ष शीतला अष्टमी किस दिन मनाई जाएगी और इसकी पूजा विधि क्या होगी, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

शीतला अष्टमी की तिथि (Sheetala Ashtami 2025 Date and Time)
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 23 मिनट से प्रारंभ होकर 23 मार्च को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए, शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च, शनिवार को रखा जाएगा। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखकर और विधि-विधान से पूजा कर शीतला माता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
शीतला माता की पूजा विधि (Sheetala Ashtami Puja Vidhi)
शीतला अष्टमी की पूजा की तैयारियां एक दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। इस दिन बासी भोजन को प्रसाद के रूप में शीतला माता को अर्पित किया जाता है और भक्त इसे ग्रहण करते हैं। पूजा के दिन प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं और व्रत का संकल्प लिया जाता है।
पूजा की थाली में मीठे चावल, हलवा, दीपक, रोली, अक्षत, वस्त्र, बड़कुले की माला, सिक्के और हल्दी रखी जाती है। इसके बाद शीतला माता को व्रत की सामग्री अर्पित की जाती है, शीतला अष्टमी की कथा का पाठ किया जाता है और आरती के साथ पूजा संपन्न होती है।
शीतला अष्टमी को बसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन बासी भोजन का विशेष महत्व होता है। इसे ठंड के समापन का प्रतीक भी माना जाता है। एक दिन पूर्व ही मीठे चावल, पूरी, पूए और हलवा आदि प्रसाद के रूप में तैयार किए जाते हैं, जिन्हें पहले माता को अर्पित किया जाता है और फिर भक्तों में वितरित किया जाता है।
शीतला अष्टमी का महत्व (Sheetala Ashtami Mahatva)
शीतला अष्टमी, जिसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है, इस दिन घरों में नए भोजन के लिए अग्नि प्रज्वलित नहीं की जाती। इसलिए, माता को अर्पित किए जाने वाला प्रसाद एक दिन पहले ही तैयार कर लिया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवी शीतला की पूजा करने से कई प्रकार के रोगों से रक्षा होती है और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शीतला माता की कथा (Sheetala Ashtami (Basoda)Vrat Katha)
एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो, देखूं धरती पर कौन मेरी पूजा करता है और कौन मुझे मानता है। यह सोचकर वे राजस्थान के डूंगरी गांव पहुंचीं, लेकिन वहां न तो उनका कोई मंदिर था और न ही कोई उनकी पूजा करता था। जब माता गांव की गलियों में घूम रही थीं, तभी एक मकान से किसी ने उबले हुए चावल का पानी (मांड) नीचे फेंक दिया, जो सीधे माता के ऊपर गिर गया। इससे उनके शरीर पर जलन होने लगी और फफोले पड़ गए।
दर्द से तड़पती हुई माता गांव में सहायता मांगने लगीं, लेकिन वहां किसी ने उनकी मदद नहीं की। तभी एक कुम्हारन, जो अपने घर के बाहर बैठी थी, ने यह सब देखा। उसने माता को बैठने के लिए कहा और उनके शरीर पर ठंडा पानी डाला। फिर उसने माता को रात की बची हुई राबड़ी और दही खाने को दिया, जिससे उन्हें राहत मिली।
इसके बाद कुम्हारन ने माता के बिखरे बालों को संवारने के लिए उनकी चोटी गूंथनी चाही। तभी उसने देखा कि माता के सिर के पीछे एक अतिरिक्त आंख छुपी हुई थी। यह देखकर वह डरकर भागने लगी, लेकिन माता ने उसे रोककर कहा, “डर मत बेटी, मैं कोई भूत-प्रेत नहीं हूं। मैं शीतला देवी हूं और यह देखने आई थी कि कौन मेरी भक्ति करता है।”
इतना कहते ही माता अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गईं। वे चार भुजाओं वाली थीं, उन्होंने हीरे-जवाहरात के आभूषण और स्वर्ण मुकुट धारण किया हुआ था। माता के इस दिव्य रूप को देखकर कुम्हारन भाव-विह्वल हो गई और सोचने लगी कि वह माता को कहां बैठाए।
माता ने उसकी मनोदशा समझकर कहा, “बेटी, तू किस सोच में पड़ गई?” तब कुम्हारन ने हाथ जोड़कर कहा, “हे मां, मेरे घर में दरिद्रता फैली हुई है, न तो बैठने के लिए चौकी है और न ही कोई आसन।” माता मुस्कुराईं और कुम्हारन को आशीर्वाद दिया, जिससे उसके घर में समृद्धि आ गई। तब से शीतला माता की पूजा का महत्व बढ़ गया और भक्त उन्हें श्रद्धा से पूजने लगे।
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