भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दिव्य स्वरूपा भगवती राधा जी का अवतरण दिवस माना जाता है। इस दिनको राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है, जो न केवल वैष्णवों के लिए अपितु समस्त भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक पर्व का स्वरूप धारण करता है। गर्ग संहिता और अन्य पुराणों में उल्लिखित विवरणों के अनुसार यह दिव्य प्राकट्य मध्याह्न काल में घटित हुआ था। यद्यपि कुछ संतजन राधा रानी के अवतरण को प्रातःकाल का मानते हैं, तथापि प्रमुख ग्रंथों में दोपहर का ही काल निर्दिष्ट हुआ है।

राधाष्टमी 2025 तिथि (Radha Ahstami 2025 Date)
Radha Ahstami 2025 Date: पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 30 अगस्त की रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगी, और इसका समापन 31 अगस्त की रात 12 बजकर 57 मिनट पर होगा। सनातन परंपरा में तिथियों की गणना सूर्योदय के आधार पर की जाती है, इसलिए 31 अगस्त को ही राधाष्टमी का पर्व श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाएगा।
राधा तत्व का परिचय
श्रीराधा को शाश्वत ब्रह्मशक्ति और श्रीकृष्ण की जीवनीशक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। वैदिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो उनकी उपासना के बिना श्रीकृष्ण की साधना अधूरी कही गई है। श्रीमद देवी भागवत में भगवान नारायण ने स्वयं यह उद्घोष किया है कि – “जो व्यक्ति राधा की अर्चना नहीं करता, वह श्रीकृष्ण की उपासना का अधिकारी नहीं होता।” ‘श्री राधायै स्वाहा’ षडाक्षर मंत्र को परम पूज्य व प्राचीनतम परंपरा का अंग मानकर राधा उपासना की अपरिहार्यता को सुस्पष्ट किया गया है।
राधा जी न केवल भगवत प्रेम की पराकाष्ठा हैं, अपितु वे समस्त सांसारिक और पारलौकिक अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली ‘राधन शक्ति’ की अधिष्ठात्री भी हैं। इसीलिए उन्हें ‘राधा’ संज्ञा दी गई है — जो राधन अर्थात सभी इच्छाओं की सिद्धि का माध्यम बनती हैं।
राधाष्टमी की पौराणिक कथा (Radha Ahstami Katha)
एक बार देवर्षि नारद ने भगवान शंकर से विनम्रतापूर्वक यह जिज्ञासा प्रकट की — “हे देव! भगवती राधा का स्वरूप क्या है? क्या वे महालक्ष्मी हैं, सरस्वती हैं या कोई देवकन्या? क्या वे वेदों की कन्या हैं या ब्रह्मविद्या की मूर्तिमान स्वरूपा?” इस पर भगवान शंकर ने अत्यंत आदर और श्रद्धा के साथ उत्तर दिया — “हे नारद! उनके रूप की मधुरिमा और गुणों की गरिमा का वर्णन करना मेरी क्षमता से परे है। कोटियों महालक्ष्मियों की छवि भी उनके चरणों की शोभा के समक्ष म्लान प्रतीत होती है। उनकी सौंदर्य माधुरी ऐसी है कि स्वयं श्रीकृष्ण तक उसमें मोहित हो उठते हैं।”
जब नारद जी ने राधा जी के अवतरण की महिमा, उनके जन्म का माहात्म्य तथा पूजन की विधियाँ जानने की अभिलाषा प्रकट की, तब भगवान शंकर ने बताया कि वृषभानुपुरी के अधिपति राजा वृषभानु महान कुल में उत्पन्न, तपस्वी, श्रीकृष्ण भक्त और सिद्धियों से युक्त थे। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कीर्तिदा सौंदर्य और सद्गुणों में अद्वितीय थीं। उनके ही गर्भ से भाद्र शुक्ल अष्टमी के दिन मध्याह्न काल में श्रीवृंदावनेश्वरी राधा जी ने अवतार लिया।
राधाष्टमी व्रत एवं पूजन महत्त्व (Radha Ahstami Mahatva)
राधाष्टमी का व्रत, भक्ति और संयम का संगम है। इस दिन भक्तों को चाहिए कि वे स्नानादि से निवृत्त होकर मध्याह्न काल में श्री राधा रानी का विधिवत पूजन करें। पूजन के लिए मंदिर अथवा गृहस्थ स्थल को पुष्पमालाओं, पताकाओं, वस्त्रों और तोरणों से अलंकृत करना चाहिए। इसके अतिरिक्त पाँच रंगों से मंडप सजाया जाता है, जिसमें षोडशदल कमल यंत्र बनाकर उसके मध्य में श्रीराधा-कृष्ण की युगल मूर्ति पश्चिमाभिमुख रखी जाती है।
फिर पुष्प, धूप, दीप, चंदन, अक्षत, तुलसी पत्र, रोली, पंचामृत आदि से उनका पूजन किया जाता है। इस अवसर पर भक्तों को सामर्थ्यानुसार पूजन सामग्रियों के साथ संकीर्तन करना चाहिए, हरिचर्चा में दिन व्यतीत करना चाहिए और रात्रि जागरण कर नाम संकीर्तन करना पुण्यदायक माना गया है।
शास्त्रों में राधा जी को केवल एक भक्त या प्रेमिका के रूप में नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की आत्मशक्ति, प्राणों की अधिष्ठात्री तथा चेतना की जननी कहा गया है। श्रीमद देवी भागवत में भगवान नारायण ने स्वयं देवर्षि नारद से कहा:
“यदि कोई श्रीराधा की पूजा नहीं करता, तो वह श्रीकृष्ण की भक्ति का अधिकारी नहीं है।”
यह उद्घोष मात्र भावनात्मक नहीं, बल्कि गूढ़ दार्शनिक सत्य है। राधा वह शक्ति हैं जो स्वयं कृष्ण को नियंत्रित करती हैं। इसीलिए उन्हें ‘राधा’ कहा गया — जिसका शाब्दिक अर्थ है: वह जो राधन (पूर्ति) करती हैं — सभी इच्छाओं, कामनाओं और साधनाओं की।
राधाष्टमी की पूजन विधि (Radha Ahstami 2025 Puja Vidhi)
- समय: मध्याह्न काल सर्वोत्तम माना गया है।
- स्थल सज्जा: पूजन स्थान को पताकाओं, तोरणों, पुष्पमालाओं से सुसज्जित करें।
- मंडप एवं यंत्र: पाँच रंगों के चूर्ण से मंडप बनाकर उसमें षोडश दल के आकार का कमलयंत्र अंकित करें।
- मूर्ति स्थापना: कमल यंत्र के मध्य में राधा-कृष्ण की युगल मूर्ति पश्चिमाभिमुख स्थापित करें।
- पूजन सामग्री: पंचामृत, धूप, दीप, पुष्प, तुलसी पत्र, माखन-मिश्री, पंजीरी, फलों का नैवेद्य, चंदन, रोली, अक्षत।
- आहार नियम: यदि व्रत नहीं रखा गया हो तो फलाहार करें, और यदि फलाहार भी संभव न हो तो सात्विक भोजन लें। लहसुन-प्याज से परहेज़ करें।
राधाष्टमी की विशेष पूजन सामग्री
- राधा-कृष्ण की मूर्ति या चित्र
- पुष्पमालाएं
- धूपदीप
- अक्षत एवं रोली
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी)
- तुलसी पत्तियाँ
- माखन-मिश्री, पंजीरी
- तांबे का कलश एवं जल
- पूजा की थाली, चंदन
राधाष्टमी पर विशेष अनुष्ठान
- श्री राधा-कृष्ण लीलाओं का श्रवण करें।
- श्रीसूक्त तथा लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।
- दिनभर संयम रखकर भगवान का चिंतन करें और रात्रि में हरिनाम संकीर्तन करें।
- व्रत न कर सकें तो फलाहार करें, अन्यथा सात्विक भोजन लें।
पूजन समय का विशेष महत्त्व
ऐसा माना जाता है कि राधा रानी का प्राकट्य दोपहर के समय अनुराधा नक्षत्र में हुआ था। अतः मध्याह्न में की गई पूजा अत्यंत शुभफलदायिनी मानी गई है। इस समय में की गई स्तुति, भजन, मंत्रोच्चार और ध्यान साधना विशेष पुण्यदायक होती है।
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FAQs
राधाष्टमी कब मनाई जाती है और 2025 में इसकी तिथि क्या है?
राधाष्टमी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह पर्व 31 अगस्त, रविवार को श्रद्धापूर्वक मनाया जाएगा, क्योंकि इस दिन सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि प्रभावी रहेगी।
राधाष्टमी का पूजन कब करें और कौन-सा समय सबसे शुभ होता है?
राधा रानी का प्राकट्य मध्याह्न में हुआ था, इसलिए दोपहर 12:00 से 2:00 बजे के बीच पूजन करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसी काल में भक्तजन पूजन, मंत्रजप और भोग अर्पण करते हैं।
राधाष्टमी के दिन कौन-कौन सी पूजा सामग्री आवश्यक होती है?
इस दिन राधा-कृष्ण की युगल मूर्ति या चित्र, पंचामृत, फूल, चंदन, रोली, अक्षत, तुलसी पत्र, धूप-दीप, माखन-मिश्री, पंजीरी, और तांबे का कलश पूजा के लिए उपयोग किए जाते हैं। साथ ही मंडप सजाने के लिए पाँच रंगों का चूर्ण भी आवश्यक होता है।
क्या राधाष्टमी पर व्रत रखना ज़रूरी है और फलाहार कैसे करें?
राधाष्टमी पर व्रत रखना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है, परंतु यदि स्वास्थ्यवश व्रत संभव न हो तो भक्तजन फलाहार कर सकते हैं। फलाहार में सात्विक आहार जैसे फल, दूध, माखन-मिश्री, पंजीरी आदि लिया जाता है। अन्न ग्रहण करने वाले लोग प्याज और लहसुन से परहेज़ करें।