नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा और आराधना के लिए समर्पित होता है। माँ ब्रह्मचारिणी का यह स्वरूप तप, साधना, संयम और धैर्य का प्रतीक है। उन्हें देवी पार्वती का वह रूप माना जाता है, जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। यह दिन साधकों को धैर्य और समर्पण के साथ जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा देता है। आइए जानें माँ ब्रह्मचारिणी के बारे में विस्तार से।
माँ ब्रह्मचारिणी कौन हैं? (Maa Brahmacharini in Hindi)
माँ ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा के नौ रूपों में से दूसरे रूप में पूजी जाती हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। उनका नाम “ब्रह्म” का अर्थ है तपस्या या तप और “चारिणी” का अर्थ है आचरण करने वाली। इस प्रकार, माँ ब्रह्मचारिणी को तपस्या और संयम की देवी के रूप में माना जाता है। वह उन स्त्रियों और पुरुषों की पूज्य देवी मानी जाती हैं जो संयम, अनुशासन और ध्यान में विश्वास करते हैं। उनका रूप साधना, शक्ति, और तप का प्रतीक है।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप (Maa Brahmacharini Ka Swaroop)
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत शांत, तेजपूर्ण और प्रभावशाली है। उनके दो हाथ हैं, जिसमें एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल धारण करती हैं। वे सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके चेहरे पर दिव्य तेज का अद्भुत आभास है। यह स्वरूप संयम, त्याग और सच्चे ज्ञान का प्रतीक है। माँ ब्रह्मचारिणी के इस रूप से यह संदेश मिलता है कि कठिन तपस्या, आत्मनियंत्रण और धर्म के मार्ग पर चलकर किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।
माँ ब्रह्मचारिणी का महत्व
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है जो जीवन में संयम और अनुशासन का पालन करना चाहते हैं। उनकी आराधना से साधक को तप, त्याग और धैर्य की शक्ति प्राप्त होती है। साथ ही, वे भक्तों को अपनी मानसिक और शारीरिक शक्तियों को सही दिशा में लगाने की प्रेरणा देती हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी का यह स्वरूप यह सिखाता है कि आत्मसंयम और ध्यान से जीवन में आने वाली बाधाओं को आसानी से पार किया जा सकता है। तपस्या का महत्व जीवन में अनुशासन और संयम के साथ काम करने पर बल देता है। उनकी पूजा से जीवन में शांति, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से साधक का मन और आत्मा शुद्ध होती है, और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक धैर्य और साहस का विकास होता है।
नवरात्रि के दुसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को शुद्ध करें। माँ की प्रतिमा या चित्र को सफेद फूलों से सजाकर स्थापित किया जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जाप करें। पूजा में सफेद फूल, चंदन, धूप, दीप, और मिश्री का भोग अर्पित करें। पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजा करें और घी का दीपक जलाकर आरती करें। अंत में प्रसाद बांटें और माँ से धैर्य और संयम की प्रार्थना करें।
पूजा के समय माँ ब्रह्मचारिणी के निम्न मंत्र(Maa Shailputri Mantra) का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है:
माँ ब्रह्मचारिणी मंत्र: Maa Brahmacharini Mantra
वन्दे वांच छि लाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्घ्
गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्घ्
पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्घ्
स्तोत्र
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्घ्
नवचक्त्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्घ्
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्। कवच
त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलोघ्
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरीघ्
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा (Maa Brahmacharini Ki Katha)
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व रखती है। देवी पार्वती, जिन्हें माँ ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है, भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या करती हैं। उनका यह तपस्या काल अत्यंत कठिन और लंबा था। इस कठिन तप के कारण ही उन्हें “ब्रह्मचारिणी” कहा जाता है, जिसका अर्थ है तपस्या का आचरण करने वाली।
कहानी के अनुसार, पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तप किया। उन्होंने प्रारंभ में सिर्फ फल और फूल खाकर जीवनयापन किया और बाद में केवल बेल-पत्रों का सेवन करने लगीं। अंततः उन्होंने बिना भोजन और जल के भी तपस्या की। उनके इस कठोर तप से सभी देवता और ऋषि-मुनि भी आश्चर्यचकित हो गए। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और उन्हें यह वरदान दिया कि वह भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करेंगी।
उनकी कठोर तपस्या और धैर्य को देखकर भगवान शिव भी प्रसन्न हुए और पार्वती जी से विवाह करने के लिए तैयार हुए। माँ ब्रह्मचारिणी का यह स्वरूप हमें सिखाता है कि सच्चे प्रेम, समर्पण और तपस्या से किसी भी कठिन परिस्थिति को पार किया जा सकता है। उनकी कथा संयम, साधना और धैर्य का प्रतीक है। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों को जीवन में संयम और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
नवरात्रि के दूसरे दिन का व्रत (Navratri 2nd Day Vrat)
नवरात्रि के दूसरे दिन का व्रत माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना के लिए रखा जाता है। इस दिन व्रती श्रद्धालु पूर्ण नियम और संयम के साथ व्रत रखते हैं और फलाहार करते हैं। व्रत में अन्न का त्याग कर फल, दूध, और विशेष रूप से व्रत के लिए बने खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से व्रती को आत्मसंयम, धैर्य और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। यह व्रत साधकों के लिए तप और संयम के प्रतीक के रूप में माना जाता है और इसे करने से साधक को शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है।
नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का फोटो (Navratri 2nd Day Maa Brahmacharini Images)


नवरात्रि के दूसरे दिन के लाभ (Navratri 2nd Day)
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों को मानसिक शांति, धैर्य और दृढ़ता की प्राप्ति होती है। यह पूजा कठिन समय में भी संयम और संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है। इस दिन व्रत और साधना करने से व्यक्ति की आत्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि होती है, जिससे वह जीवन की कठिनाइयों का सामना कर पाता है। माँ की कृपा से साधक के मन में शांति और आत्मबल आता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए आवश्यक होता है।
माँ ब्रह्मचारिणी का प्रिय रंग (Maa Brahmacharini Color)
माँ ब्रह्मचारिणी को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है। सफेद रंग शुद्धता, संयम, और तप का प्रतीक है, जो माँ के स्वरूप से मेल खाता है। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान भक्त सफेद वस्त्र धारण करते हैं और उन्हें सफेद फूल अर्पित करते हैं। सफेद रंग मानसिक शांति, सकारात्मकता, और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, जो माँ की साधना और तपस्या का गुण है।
निष्कर्ष
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और पूजा संयम, तपस्या और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है, जो भक्तों को संयमित और धैर्यवान बनने की प्रेरणा देती है। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि व्यक्ति को जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए आत्मबल और स्थिरता प्राप्त होती है। उनके प्रिय सफेद रंग की पूजा और उनके मंत्रों का जाप, साधक को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
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