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Matsya Dwadashi 2024 :मत्स्य द्वादशी 2024 कब है, तिथि, पूजा विधि और महत्व

मत्स्य द्वादशी का पर्व भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक, मत्स्य अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाता है. यह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो मनुष्य को धर्म के मार्ग पर चलने और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आइए इस लेख में हम मत्स्य द्वादशी 2024 की तिथि, पूजा विधि, महत्व और कथा के बारे में विस्तार से जानें।

Matsya Dwadashi 2024

मत्स्य द्वादशी 2024 की तिथि (Matsya Dwadashi 2024 Date)

मत्स्य द्वादशी का पर्व हर साल हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमांत महीने की पौष मास की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष 2024 में मत्स्य द्वादशी 12 दिसंबर को पड़ेगी।

मत्स्य द्वादशी का महत्व (Matsya Dwadashi Significance)

मत्स्य द्वादशी का हिन्दू धर्म में कई तरह का महत्व है। आइए इन महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को समझते हैं:

  • वेदों की रक्षा: मत्स्य द्वादशी का सबसे महत्वपूर्ण महत्व यह है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर दैत्य हयग्रीव का वध किया था। दैत्य हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया था, जिसके कारण ज्ञान और धर्म का नाश हो रहा था। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में हयग्रीव का वध कर वेदों की रक्षा की और धर्म की पुनर्स्थापना की।
  • अधर्म का नाश: मत्स्य अवतार में भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर व्याप्त अधर्म का नाश किया और धर्म की स्थापना की। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में भी सदाचरण और धर्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मोक्ष हिन्दू धर्म में जीवन-मुक्ति की अवस्था है, जिसे प्राप्त करने का हर व्यक्ति प्रयास करता है।
  • पापों से मुक्ति: मत्स्य द्वादशी के दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, इस दिन सत्कर्म करने का संकल्प लेने से व्यक्ति भविष्य में होने वाले पापों से भी बच सकता है।
  • मनोकामना पूर्ति: मत्स्य द्वादशी के दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु अपने भक्तों की सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

मत्स्य द्वादशी की पूजा विधि (Matsya Dwadashi Puja Vidhi)

मत्स्य द्वादशी के पर्व को धूमधाम से मनाने के लिए भक्त विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। आइए, मत्स्य द्वादशी की पूजा विधि को विस्तार से जानते हैं:

  • पूजा की तैयारी: मत्स्य द्वादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहन लें। इसके बाद पूजा स्थान को साफ करें और चौकी पर आसन बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। आप चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर का भी उपयोग कर सकते हैं।
  • पंचामृत स्नान और पूजन सामग्री: भगवान विष्णु की प्रतिमा का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान विष्णु को वस्त्र, चंदन, तुलसी की माला, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  • मंत्र जाप और स्तुति: भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्रों का जाप करें। आप “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ मत्स्य रूपाय नमः” जैसे मंत्रों का जाप कर सकते हैं। साथ ही, भगवान विष्णु की स्तुति में भजन या स्तोत्र का पाठ भी किया जा सकता है।
  • मत्स्य पुराण का पाठ: मत्स्य द्वादशी के दिन मत्स्य पुराण का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है। मत्स्य पुराण भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा, सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय के चक्र, धर्म-कर्म का महत्व आदि विषयों पर आधारित है। इस पुराण का पाठ करने से व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
  • व्रत का पालन: मत्स्य द्वादशी के दिन भक्त व्रत रखते हैं। इस व्रत में आप सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर सकते हैं और फिर पूरे दिन सात्विक भोजन का सेवन करते हैं। सात्विक भोजन में फल, सब्जियां, दूध और दही आदि का सेवन किया जाता है। व्रत का पारण अगले दिन यानी त्रयोदशी तिथि पर सूर्योदय के बाद किया जाता है।
  • आरती और प्रसाद: शाम के समय भगवान विष्णु की आरती करें। आरती के बाद भगवान को अर्पित किया गया नैवेद्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और परिवार के अन्य सदस्यों में भी वितरित करें।

मत्स्य द्वादशी की कथा (Matsya Dwadashi Katha)

मत्स्य द्वादशी की पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। आइए, इस कथा को विस्तार से जानते हैं:

सत्ययुग में वैदिक ऋषि सुतपास और उनकी पत्नी पृथ्वी समुद्र के किनारे तपस्या कर रहे थे। एक दिन, उन्हें समुद्र में खेलती हुई एक छोटी सी मछली मिली। दयालु ऋषि दंपत्ति ने उस मछली को पकड़कर अपने कमंडल में रख लिया और उसका पालन-पोषण करने लगे। कुछ समय बाद, वह मछली तेजी से बढ़ने लगी। कमंडल में उसके लिए जगह कम पड़ने लगी, तो ऋषि दंपत्ति ने उसे एक कुएं में रख दिया। लेकिन, कुएं में भी वह मछली जल्द ही बड़ी हो गई। अंत में, उन्हें उसे समुद्र में छोड़ना पड़ा।

समुद्र में जाने के बाद, वह मछली भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का रूप धारण कर लेती है। भगवान विष्णु मत्स्य रूप में ऋषि सुतपास को दर्शन देते हैं और उन्हें बताते हैं कि सात दिनों में भयंकर प्रलय आने वाला है। प्रलय से बचने के लिए उन्हें एक विशाल जहाज का निर्माण करना चाहिए। ऋषि सुतपास भगवान विष्णु के निर्देशानुसार जहाज बनाते हैं।

प्रलय के समय, भगवान विष्णु मत्स्य अवतार में जहाज को अपनी पीठ पर उठाते हैं और सभी जीवों को उस जहाज में सुरक्षित स्थान देते हैं। प्रलय समाप्त होने के बाद, भगवान विष्णु मत्स्यावतार का त्याग कर लेते हैं और सृष्टि का पुनर्निर्माण होता है।

मत्स्य द्वादशी के उपाय (Matsya Dwadashi Upaay)

मत्स्य द्वादशी के दिन कुछ विशेष उपाय करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और कष्ट दूर होते हैं। आइए, इन उपायों को जानते हैं:

जल थाल भेंट :मछली पालन करने वाले स्थान पर ले जाकर छोड़ दें। यह उपाय करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवों के प्रति दयाभाव का भाव बढ़ता है।

हवन करना: मत्स्य द्वादशी के दिन यज्ञशाला में विद्वान ब्राह्मणों द्वारा हवन कराया जा सकता है। हवन में आहुतियां देकर भगवान विष्णु का आह्वान किया जाता है। हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है और व्यक्ति को मनचाही सफलता प्राप्त होती है।

दान का महत्व: मत्स्य द्वादशी के दिन दान करने का भी विशेष महत्व है। आप गरीबों और जरूरतमंदों को दान दे सकते हैं। दान में अनाज, वस्त्र, दक्षिणा आदि का दान किया जा सकता है। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

मंदिर दर्शन: मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के मंदिर जाकर दर्शन और पूजा करने का विशेष महत्व है। कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की प्रतिमा भी स्थापित होती है। आप ऐसे मंदिरों में जाकर दर्शन कर सकते हैं।

मछली का भोजन न करें: मत्स्य द्वादशी के दिन मछली का भोजन नहीं करना चाहिए। यह दिन मत्स्य अवतार को समर्पित होता है, इसलिए इस दिन मछली का भोजन वर्जित माना जाता है।

उपसंहार

मत्स्य द्वादशी का पर्व भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से व्यक्ति को जीवन में धर्म, मोक्ष और सफलता की प्राप्ति होती है।

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