संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इसे “संकट चौथ” या “गणेश चतुर्थी” भी कहा जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि एवं सफलता के दाता माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, जो जीवन के संकटों से छुटकारा पाना चाहते हैं। आइए जानते हैं 2025 में मासिक संकष्टी चतुर्थी की तिथियां, इस व्रत का महत्व और इसके लाभ।
2025 मासिक संकष्टी चतुर्थी तिथियों की सूची (Masik Sankashti Chaturthi Dates List 2025)
2025 में संकष्टी चतुर्थी की तिथियां इस प्रकार हैं:
महीना | संकष्टी चतुर्थी तिथि | चंद्रोदय समय |
---|---|---|
जनवरी | 17 जनवरी 2025, सोमवार | रात 09:09 बजे |
फरवरी | 16 फरवरी 2025, मंगलवार | रात 09:37 बजे |
मार्च | 17 मार्च 2025, गुरुवार | रात 09:18 बजे |
अप्रैल | 16 अप्रैल 2025, शुक्रवार | रात 10:10 बजे |
मई | 16 मई 2025, रविवार | रात 10:39 बजे |
जून | 14 जून 2025, सोमवार | रात 10:07 बजे |
जुलाई | 14 जुलाई 2025, बुधवार | रात 9:56 बजे |
अगस्त | 12 अगस्त 2025, गुरुवार | रात 8:58 बजे |
सितंबर | 10 सितंबर 2025, शनिवार | रात 8:06 बजे |
अक्टूबर | 10 अक्टूबर 2025, रविवार | रात 8:12 बजे |
नवंबर | 08 नवंबर 2025, सोमवार | रात 7:57 बजे |
दिसंबर | 07 दिसंबर 2025, बुधवार | रात 7:55 बजे |
यह तिथियां चंद्रमा के उदय समय के अनुसार गणना की गई हैं। व्रत रखने वाले भक्त इन तिथियों पर पूजा-अर्चना कर चंद्र दर्शन करते हैं और व्रत का पारण करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व (Sankashti Chaturthi Mahatva)
1. भगवान गणेश की कृपा:
संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इसे करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है, और भक्त के जीवन से सभी विघ्न और संकट दूर होते हैं।
2. पापों का नाश:
इस व्रत को करने से पिछले जन्म और वर्तमान जन्म के पाप समाप्त हो जाते हैं। भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
3. सुख-समृद्धि का आगमन:
जो व्यक्ति नियमित रूप से संकष्टी चतुर्थी का व्रत करता है, उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
4. संकटों से मुक्ति:
इस व्रत को “संकष्टी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह व्रत जीवन के संकटों को दूर करने में सहायक है।
5. स्वास्थ्य में सुधार:
ऐसी मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
6. बुद्धि और विवेक का विकास:
भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के विवेक और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि (Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
1. प्रातः काल स्नान:
व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. व्रत का संकल्प:
भगवान गणेश की पूजा के लिए व्रत का संकल्प लें।
3. दिनभर उपवास:
इस दिन उपवास रखा जाता है। भक्त फलाहार कर सकते हैं, लेकिन अन्न का सेवन नहीं किया जाता।
4. भगवान गणेश की पूजा:
पूजा के लिए भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।
5. मंत्रोच्चार:
भगवान गणेश के मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करें।
6. गणेश चालीसा का पाठ:
पूजा के दौरान गणेश चालीसा और गणेश स्तुति का पाठ करें।
7. चंद्र दर्शन:
रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें और दर्शन करें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
संकष्टी चतुर्थी व्रत के लाभ (Sankashti Chaturthi Laabh)
1. मानसिक शांति:
यह व्रत मानसिक शांति और सकारात्मकता लाने में सहायक है।
2. जीवन में सफलता:
भगवान गणेश की कृपा से व्यक्ति को अपने कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
3. पारिवारिक सुख:
इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति और प्रेम का वातावरण बनता है।
4. आर्थिक उन्नति:
संकष्टी चतुर्थी के व्रत से आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
5. बच्चों की सफलता:
जो माता-पिता अपने बच्चों की सफलता की कामना करते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है।
6. स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान:
संकष्टी चतुर्थी का व्रत बीमारियों से बचाव और अच्छे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
संकष्टी चतुर्थी पौराणिक कथा (Sankashti Chaturthi Katha)
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में अयोध्या के प्रतापी राजा दशरथ को शिकार का अत्यधिक शौक था। एक बार शिकार के दौरान उन्होंने अनजाने में श्रवण कुमार नामक ब्राह्मण युवक का वध कर दिया। श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता ने राजा दशरथ को शाप दिया, “जिस तरह हम अपने पुत्र वियोग में प्राण त्याग रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हें भी अपने पुत्र वियोग का दुख सहना पड़ेगा और इसी पीड़ा में तुम्हारी मृत्यु होगी।”
इस शाप से दुखी होकर राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति की कामना से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ के फलस्वरूप भगवान विष्णु ने राम के रूप में उनके घर अवतार लिया। साथ ही भगवती लक्ष्मी ने सीता के रूप में जन्म लिया।
जब राजा दशरथ ने राम को वनवास जाने का आदेश दिया, तो भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन को गए। वनवास के दौरान उन्होंने खर-दूषण जैसे राक्षसों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने सीता जी का अपहरण कर लिया। सीता की खोज में भगवान राम ने पंचवटी को त्यागकर ऋष्यमूक पर्वत की ओर प्रस्थान किया और वहां सुग्रीव से मित्रता की। इसके बाद सीता जी की खोज में हनुमान सहित वानर सेना जुट गई।
सीता की खोज करते हुए वानरों ने गिद्धराज संपाती से मुलाकात की। संपाती ने वानरों से पूछा, “तुम लोग कौन हो, और इस वन में क्यों आए हो?” वानरों ने उत्तर दिया, “हम दशरथ पुत्र राम के सेवक हैं। उनकी पत्नी सीता का रावण ने अपहरण कर लिया है। हम उनकी खोज में यहां आए हैं।”
संपाती ने कहा, “मैं जानता हूं कि सीता कहां हैं। उनके अपहरण के दौरान मेरा भाई जटायु उनके लिए युद्ध करते हुए अपने प्राण गंवा चुका है। समुद्र के उस पार राक्षसों की नगरी लंका है। वहीं अशोक वाटिका में सीता जी अशोक वृक्ष के नीचे बैठी हैं।”
संपाती ने सुझाव दिया कि हनुमान जी समुद्र पार कर लंका तक जा सकते हैं, क्योंकि वे अत्यंत पराक्रमी हैं। यह सुनकर हनुमान जी ने संपाती से पूछा, “इतने विशाल समुद्र को मैं कैसे पार कर सकता हूं?”
संपाती ने उन्हें संकष्टी चतुर्थी व्रत करने का परामर्श दिया। उन्होंने कहा, “यदि आप यह व्रत करेंगे, तो भगवान गणेश की कृपा से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लेंगे।” संपाती की बात मानकर हनुमान जी ने संकष्टी चतुर्थी व्रत किया। व्रत के प्रभाव से हनुमान जी ने अपनी शक्ति को पहचाना और समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए।
इस प्रकार यह कथा दर्शाती है कि संकष्टी चतुर्थी व्रत अद्भुत शक्ति और संकटों से मुक्ति प्रदान करता है। इसे करने से भक्त के सभी कार्य सफल होते हैं और भगवान गणेश की कृपा से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस व्रत का महत्व इसलिए भी अद्वितीय है क्योंकि यह जीवन के कष्टों का निवारण करने वाला और मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है।
संकष्टी चतुर्थी के दौरान ध्यान देने योग्य बातें
- व्रत के दौरान मन को शुद्ध रखें और भगवान गणेश के प्रति पूर्ण भक्ति रखें।
- झूठ, क्रोध और अहंकार से बचें।
- व्रत के दिन अन्न का सेवन न करें।
- चंद्रमा को अर्घ्य देते समय जल में रोली, अक्षत और फूल डालें।
- व्रत का पारण करते समय भगवान गणेश का प्रसाद ग्रहण करें।
संकष्टी चतुर्थी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान गणेश की आराधना के माध्यम से जीवन के संकटों को दूर करने और सुख-शांति प्राप्त करने का माध्यम है। 2025 में संकष्टी चतुर्थी की तिथियों के अनुसार, भक्त गणपति जी की पूजा करके अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। भगवान गणेश की कृपा से हर भक्त के जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सफलता का संचार होता है।
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