महाकुंभ में कल्पवास की परंपरा का विशेष महत्व है। संगम नगरी में हर वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु कल्पवास करने के लिए आते हैं। इस परंपरा के अंतर्गत श्रद्धालुओं को जमीन पर सोना होता है और नियमपूर्वक तीन बार गंगा स्नान करना अनिवार्य होता है। यह प्रक्रिया आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक मानी जाती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब प्रयागराज में शुरू हुए कल्प वास में एक कल्प का पुण्य प्राप्त होता है। शास्त्रों में एक कल्प को ब्रह्मा का एक दिन बताया गया है। महाभारत और रामचरितमानस में भी कल्प वास का वर्णन मिलता है। संगम तट पर एक माह तक चलने वाले कल्पवास में कल्पवासियों को जमीन पर सोना पड़ता है। इस दौरान, एक समय का आहार या निराहार रहना होता है, और तीन बार गंगा स्नान करना अनिवार्य होता है। महाभारत के अनुसार, सौ वर्षों तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या का जो फल मिलता है, वह माघ मास में संगम पर कल्प वास करने से प्राप्त हो सकता है।

मान्यताओं के अनुसार, माघ माह में सभी तीर्थ अपने राजा से मिलने प्रयागराज आते हैं। गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम पर स्नान करके ये तीर्थ और देवता धन्य हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि कल्पवास के दौरान संगम में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
क्या होता है कल्पवास (Meaning of Kalpwas)
कल्प वास आध्यात्मिक विकास का एक साधन है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास बताते हैं कि कल्प वास का मतलब होता है पूरे एक महीने तक संगम तट पर रहकर वेदाध्ययन, ध्यान, और पूजा में संलग्न रहना। इस दौरान भक्त को कठिन तपस्या और भगवत साधना करनी होती है। कल्प वास का समय पूर्ण रूप से प्रभु भक्ति को समर्पित होता है, और कुंभ के दौरान किए गए कल्प वास का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
महाकुंभ में इस साल कल्प वास के नियमों का पालन पौष महीने के 11वें दिन से माघ महीने के 12वें दिन तक करना होगा। धार्मिक मान्यता है कि जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि की यात्रा आरंभ करते हैं, तब एक माह का कल्पवास ब्रह्म देव के एक दिन के समान पुण्य फल देता है। इसलिए कई लोग मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025) के दिन से भी कल्पवास की शुरुआत करते हैं। पूरे माघ महीने में संगम पर निवास कर तप, साधना, पूजन, और अनुष्ठान को ही कल्पवास कहा जाता है।
कल्पवास के नियम (Kalpwas Niyam)
कल्पवास के नियम बहुत कठोर होते हैं। कल्प वास करने वाले को श्वेत या पीले रंग का वस्त्र पहनना होता है। कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात होती है। इसकी अवधि तीन रात, तीन महीने, छह महीने, छह साल, बारह साल या जीवनभर भी हो सकती है। पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय द्वारा वर्णित कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं। जो व्यक्ति 45 दिनों तक कल्पवास करता है, उन्हें इन 21 नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। ये 21 नियम इस प्रकार हैं:
- सत्यवचन
- अहिंसा
- इंद्रियों पर वश रखना
- सभी प्राणियों पर दया भाव रखना
- ब्रह्मचर्य का पालन करना
- बुरी आदतों से दूर रहना
- ब्रह्म मुहूर्त में उठना
- तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना
- त्रिकाल संध्या का ध्यान करना
- पिंडदान करना
- दान-पुण्य करना
- अंतर्मुखी जप
- सत्संग
- संकल्पित क्षेत्र से बाहर न जाना
- निंदा ना करना
- साधु-संतों की सेवा
- जप और कीर्तन करना
- एक समय भोजन करना
- जमीन पर सोना
- अग्नि सेवन न करना
- देव पूजन करना
कल्पवास के लाभ (Kalpwas ke Labh)
- जो व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठापूर्वक नियमों का पालन करते हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- कुंभ में कल्प वास करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है।
- कुंभ मेले के दौरान किया गया कल्पवास उतना ही फलदायक होता है जितना 100 वर्षों तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करना।
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