हरिशयनी एकादशी, जिसे देवशयनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु के शयन करने के शुभ अवसर पर रखा जाता है। इस दिन से ही चातुर्मास का शुभारंभ होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि हरिशयनी एकादशी 2025 कब है, इसकी पूजा विधि, महत्व, कथा और व्रत के लाभ क्या हैं।

हरिशयनी एकादशी 2025 कब है? (तिथि और समय) (Harishayani Ekadashi 2025 Date and Time)
हरिशयनी एकादशी 2025 में 6 जुलाई 2025, रविवार को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि प्रारंभ होगी 5 जुलाई 2025 को रात 11:38 बजे और समाप्त होगी 6 जुलाई 2025 को रात 9:05 बजे। व्रत का पारण अगले दिन यानी 7 जुलाई 2025 को प्रातः उचित मुहूर्त में किया जाएगा।
हरिशयनी एकादशी पूजा विधि (Harishayani Ekadashi 2025 Puja Vidhi)
प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
घर में पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
भगवान विष्णु को पीले फूल, तुलसी दल और फल अर्पित करें।
शंख, चक्र, गदा और पद्म से सुशोभित भगवान विष्णु का ध्यान करें।
विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।
रात्रि जागरण और हरि नाम संकीर्तन करें।
अगले दिन पारण समय पर व्रत पूर्ण करें और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें।
हरिशयनी एकादशी का महत्व (Harishayani Ekadashi Mahatva)
हरिशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान संसार का संचालन माता लक्ष्मी और देवगण करते हैं। इस व्रत को करने से जीवन के सभी पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से विवाह योग्य कन्याओं और पुत्र प्राप्ति की कामना करने वालों के लिए शुभ माना जाता है।
देवशयनी एकादशी की कथा (Harishayani Ekadashi Katha)
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, विशेष रूप से पद्म पुराण में वर्णित है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु वामन अवतार धारण कर हर वर्ष पाताल लोक जाते हैं। यह यात्रा वे राजा बलि को दिया गया अपना वचन निभाने के लिए करते हैं। भगवान विष्णु चार महीनों तक पाताल लोक में निवास करते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है।
कथा के अनुसार, वामन रूप में भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि मांगकर राजा बलि से उसका समस्त राज्य ले लिया। राजा बलि ने अपनी भक्ति और दानशीलता का परिचय देते हुए भगवान से निवेदन किया कि वे पाताल लोक में उनके साथ निवास करें। भगवान विष्णु ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और पाताल लोक में निवास करने का वचन दिया।
इससे देवी लक्ष्मी चिंतित हो उठीं। उन्होंने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और भाई का स्नेह पाकर राजा बलि ने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कर दिया। इसी समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को आशीर्वाद दिया कि वे हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देव प्रबोधिनी एकादशी) तक पाताल लोक में निवास करेंगे। यही अवधि चातुर्मास के नाम से जानी जाती है।
देवशयनी एकादशी की दुसरी कथा: शंखचूड़ असुर और भगवान विष्णु
एक प्राचीन कथा के अनुसार, भगवान विष्णु और शंखचूड़ नामक असुर के बीच वर्षों तक भीषण युद्ध चला। इस लंबे युद्ध से भगवान विष्णु अत्यंत थक गए। तब सभी देवताओं ने आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की और उनसे प्रार्थना की कि वे विश्राम करें और सृष्टि संचालन का कार्य अन्य देवों को सौंप दें।
देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले गए। कहा जाता है कि देवलोक के चार प्रहर पृथ्वी के चार मास के बराबर होते हैं। तभी से भगवान विष्णु हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ होने पर शयन करते हैं। इसी कारण इस दिन को देवशयनी एकादशी कहा जाता है और इस तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा और व्रत का विधान बना।
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FAQs
देवशयनी एकादशी 2025 कब मनाई जाएगी?
हर वर्ष की तरह 2025 में देवशयनी एकादशी/हरिशयनी एकादशी 6 जुलाई 2025, रविवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं और चातुर्मास प्रारंभ होता है।
देवशयनी एकादशी व्रत का महत्व क्या है?
देवशयनी एकादशी/हरिशयनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति और चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है। इसे करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
शंखचूड़ असुर और देवशयनी एकादशी की कथा का क्या संबंध है?
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखचूड़ असुर से युद्ध के बाद आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन विश्राम लिया। तभी से इस तिथि को देवशयनी एकादशी के रूप में पूजा जाता है।
देवशयनी एकादशी पर कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते क्योंकि भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं।
देवशयनी एकादशी व्रत में पूजा कैसे करें?
इस दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें, भगवान विष्णु को तुलसी, पीले फूल और चंदन अर्पित करें, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और रात्रि में भजन-कीर्तन करें।