भगवान हनुमान अपनी अद्वितीय शक्तियों और बल के लिए प्रसिद्ध हैं। हनुमान अष्टक पाठ से भक्तों के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा और समस्याओं को दूर करने में सहायक होते हैं। यह भक्ति भजन भगवान हनुमान को समर्पित है और इसे महान संत और हनुमान भक्त तुलसीदास जी ने रचा था। “अष्टक” या “अष्टकम” का अर्थ होता है आठ, और इस प्रार्थना में आठ श्लोक हैं जो पूरी तरह से श्री हनुमान जी की स्तुति में लिखे गए हैं। इसके अंत में एक दोहा भी शामिल है, जो पाठ को पूर्णता प्रदान करता है।

हनुमान अष्टक लाभ (Hanuman Ashtak Labh)
हनुमान जी की आराधना के लिए मंगलवार का दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान हनुमान की पूजा का अत्यधिक महत्व है। यदि आप किसी प्रकार की चिंता से मुक्त होना चाहते हैं या अपने जीवन के कष्टों का समाधान पाना चाहते हैं, तो प्रत्येक मंगलवार को “हनुमान अष्टक” का पाठ करें। यह पाठ आपको चमत्कारी लाभ प्रदान करेगा और जीवन में शांति एवं सुख की अनुभूति कराएगा।
हनुमान अष्टक का पाठ करने से भक्तों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा बनी रहती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ हनुमान अष्टक का पाठ करता है, उसे सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से राहत मिलती है।
यदि आप किसी शत्रु के भय से परेशान हैं या अन्य किसी चिंता से विचलित हैं, तो हर मंगलवार को नियमित रूप से हनुमान अष्टक का पाठ करें। यह पाठ न केवल भय से मुक्ति दिलाता है, बल्कि जीवन में आत्मविश्वास और शांति का संचार भी करता है।
हनुमान अष्टक पाठ (Hanuman Ashtak Path)
॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥
रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
हनुमान अष्टक पाठ के नियम (Hanuman Ashtak Niyam)
यदि आप हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहते हैं, तो पाठ स्थल पर हनुमान जी के साथ प्रभु श्री राम की तस्वीर भी रखें।
तस्वीरों के सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें।
एक तांबे के लोटे या गिलास में शुद्ध जल भरकर पास में रखें।
इसके बाद पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ हनुमान जी का ध्यान करें और पाठ आरंभ करें।
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