षटतिला एकादशी हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत में तिल का विशेष महत्व होता है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का सेवन, तिल का दान, तिल के स्नान और तिल से भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। आइए विस्तार से जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि, महत्व और इसका संदेश।
षटतिला एकादशी का महत्व (Shattila Ekadashi Mahatva)
षटतिला एकादशी का नाम “षट” और “तिल” शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें “षट” का अर्थ छह और “तिल” का अर्थ तिल है। इस व्रत में तिल का छह प्रकार से उपयोग किया जाता है, जैसे – तिल का सेवन, तिल का दान, तिल से स्नान, तिल का उबटन, तिल से हवन और तिल जल में मिलाकर उसका आचमन करना। ऐसा माना जाता है कि इस दिन तिल का उपयोग करने से व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक दोष दूर होते हैं और वह पवित्रता की ओर अग्रसर होता है।
षटतिला एकादशी का वर्णन पद्म पुराण और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत और भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से शरीर और मन शुद्ध होते हैं, और व्यक्ति की जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है।
षटतिला एकादशी की पूजा विधि (Shattila Ekadashi 2025 Puja Vidhi)
षटतिला एकादशी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. व्रत का संकल्प:
- एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- व्रत का संकल्प लेते समय यह प्रार्थना करें कि आपका व्रत बिना किसी बाधा के पूर्ण हो।
2. पूजा की तैयारी:
- पूजा के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को गंगाजल से शुद्ध करें।
- एक साफ चौकी पर पीला या सफेद कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु को विराजमान करें।
- पूजा सामग्री में तिल, पंचामृत, फूल, चंदन, धूप, दीप, फल, नारियल और गंगाजल शामिल करें।
3. पूजा का आरंभ:
- भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और धूप जलाएं।
- भगवान विष्णु को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं।
- भगवान विष्णु को चंदन, फूल, तिल और तुलसी दल अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।
4. तिल का उपयोग:
- तिल से हवन करें और भगवान को तिल के लड्डू या तिल मिश्रित पकवान का भोग लगाएं।
- स्नान के लिए जल में तिल मिलाएं।
- तिल का दान गरीबों और ब्राह्मणों को करें।
5. रात्रि जागरण:
- रात्रि को भगवान विष्णु की कथा और भजन सुनें।
- जागरण का महत्व इस दिन विशेष होता है, जिससे व्रत की पूर्णता होती है।
6. व्रत का पारण:
- द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करें।
- पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
षटतिला एकादशी की कथा (Shattila Ekadashi Katha)
पौराणिक कथाओं में षटतिला एकादशी को अत्यंत पुण्यकारी और महत्वशाली बताया गया है। इस व्रत से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जिसमें भगवान विष्णु ने स्वयं एक भक्त महिला को उसके कर्मों का परिणाम समझाने और उसका कल्याण करने के लिए लीला की। आइए जानते हैं इस कथा का संपूर्ण विवरण और षटतिला एकादशी व्रत का महत्व।
एक समय की बात है, एक ब्राह्मणी थी, जो बहुत ही धर्मपरायण और भगवान विष्णु की भक्त थी। वह नियमित रूप से व्रत करती थी और भगवान की पूजा-अर्चना में अपना समय व्यतीत करती थी। लेकिन, वह अपने पूजा-पाठ के साथ-साथ दान-पुण्य में विश्वास नहीं करती थी। भगवान विष्णु ने सोचा कि ब्राह्मणी दान-पुण्य नहीं करती, ऐसे में इसके भोजन का क्या होगा, ये सोच कर भगवान विष्णु भिखारी के रूप ब्राह्मणी के पास चले गए।
उन्होंने उससे भिक्षा में कुछ देने की याचना की। ब्राह्मणी ने सोचा कि वह उसे कुछ न कुछ देना चाहिए, लेकिन उसकी कृपण प्रवृत्ति के कारण उसने भिक्षा में केवल एक मिट्टी का ढेला दे दिया। भगवान विष्णु उस मिट्टी के ढेले को लेकर अपने लोक, बैकुंठ में लौट गए।
कुछ समय बाद, ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और अपने धार्मिक कर्मों के फलस्वरूप वह बैकुंठ लोक पहुंच गई। वहां पहुंचने पर उसने देखा कि उसे एक सुंदर महल दिया गया है, जो उसकी धार्मिकता और भक्ति का परिणाम था। लेकिन उस महल में भोजन या अन्य आवश्यक वस्तुएं नहीं थीं। भूख और कष्ट का अनुभव करते हुए, ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से इस बारे में पूछा।
ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से निवेदन किया, “हे प्रभु, मैंने अपने पूरे जीवन आपका व्रत और पूजन किया है, फिर भी मेरे महल में अन्नादि का अभाव क्यों है? मेरी भक्ति और तपस्या का यह परिणाम क्यों है?”
भगवान विष्णु ने उसकी समस्या को समझाते हुए कहा, “तुमने अपने जीवन में व्रत और पूजा तो की, लेकिन कभी भी दान-पुण्य में विश्वास नहीं किया। तुम्हारे महल का निर्माण तुम्हारी भक्ति के कारण हुआ, लेकिन उसमें अन्न और अन्य वस्तुओं की कमी इसलिए है क्योंकि तुमने किसी को भी भोजन या दान नहीं दिया।”
षटतिला एकादशी और तिल का महत्व (Shattila Ekadashi Teel ka Mahatva)
षटतिला एकादशी के दिन तिल का उपयोग क्यों महत्वपूर्ण है, इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं:
- धार्मिक महत्व:
- तिल को पवित्र माना जाता है। इसे पापों का नाश करने वाला और पवित्रता प्रदान करने वाला बताया गया है।
- भगवान विष्णु की पूजा में तिल का उपयोग करने से उनकी कृपा जल्दी प्राप्त होती है।
- वैज्ञानिक महत्व:
- तिल स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। इसमें प्रोटीन, आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है।
- सर्दियों के मौसम में तिल का सेवन शरीर को गर्म रखता है और ऊर्जा प्रदान करता है।
षटतिला एकादशी का संदेश
षटतिला एकादशी हमें सिखाती है कि जीवन में परोपकार और दान का कितना महत्व है। केवल व्रत और पूजा करने से ही धर्म की पूर्ति नहीं होती, बल्कि दूसरों की सहायता करना भी उतना ही आवश्यक है। इस दिन तिल का दान और उपयोग आत्मा और शरीर दोनों को शुद्ध करता है।
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