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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 10 Shloka 10 | गीता अध्याय 3 श्लोक 10 अर्थ सहित | सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 10 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 10 in Hindi): भगवद्गीता न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि जीवन जीने की सम्पूर्ण कला का विज्ञान है। इसमें निहित गीता अध्याय 3 श्लोक 3.10 यज्ञ की अवधारणा को स्पष्ट करता है, जो मानव सभ्यता के विकासक्रम में सदैव केन्द्रीय रहा है। यज्ञ को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान समझना संकीर्ण दृष्टिकोण होगा – वास्तव में यह सम्पूर्ण सृष्टि के संचालन का मूलमंत्र है। प्रस्तुत लेख में हम इस श्लोक के माध्यम से यज्ञ के गूढ़ अर्थ, उसके सामाजिक-आध्यात्मिक प्रभाव और वर्तमान युग में उसकी प्रासंगिकता का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

Table of Contents

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 10 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 10)

गीता अध्याय 3 श्लोक 10 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 10 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 3 श्लोक 10 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 10 in Hindi with meaning)
Gita Chapter 3 Verse 10

गीता अध्याय 3 श्लोक 3.10: मूल पाठ, शब्दार्थ एवं भावार्थ

मूल संस्कृत पाठ:

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः |
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोSस्तिवष्टकामधुक् || १० ||

शब्दार्थ विवरण:

शब्दअर्थ
सहके साथ
यज्ञाःयज्ञ
प्रजाःप्राणी/सृष्टि
सृष्ट्वारचना करके
पुराप्राचीन काल में
उवाचकहा
प्रजापतिःब्रह्मा (सृष्टिकर्ता)
अनेनइसके द्वारा
प्रसविष्यध्वम्विकसित होओ/फलो-फूलो
एषःयह
वःतुम्हारा
अस्तुहो
इष्टवांछित
काम-धुक्इच्छापूर्तिकारक

भावार्थ:

सृष्टि के प्रारंभ में प्रजापति ब्रह्मा ने यज्ञ को आधार बनाकर समस्त प्रजा (मनुष्य, देवता, प्राणी) की रचना की और उन्हें आदेश दिया: “तुम सभी इस यज्ञ प्रक्रिया के माध्यम से विकसित होकर समृद्धि प्राप्त करो, क्योंकि यह यज्ञ ही तुम्हारी सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला है।”

प्रजापति विष्णु: समस्त सृष्टि के आधार

 भगवान विष्णु प्रजापति रूप में
भगवान विष्णु प्रजापति रूप में, हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए हुए, सृष्टि की रचना करते हुए, उनके पीछे ब्रह्मांडीय प्रकाश

भगवद्गीता, वेदों और पुराणों में भगवान विष्णु को प्रजापति कहा गया है। श्रीमद्भागवत में उन्हें “श्रियः पति”, “लोकपति”, “धरापति”, “यज्ञपति” जैसे अनेक नामों से संबोधित किया गया है। ये सभी उपाधियाँ यह दर्शाती हैं कि वे सम्पूर्ण जगत के आधार हैं।

📖 श्रीमद्भागवत (2.4.20) में श्लोक –

श्रियः पतिर्यज्ञपतिः प्रजापतिर्धियां पतिर्लोकपतिर्धरापतिः |
पतिर्गतिश्र्चान्धकवृष्णिसात्वतां प्रसीद तां मे भगवान् सतां पतिः ||

अर्थात – भगवान विष्णु सभी जीवों, लोकों, और गुणों के स्वामी हैं। उन्होंने ही इस सृष्टि की रचना की ताकि जीवात्माएँ यज्ञ करके अपने शुद्ध स्वरूप को पहचान सकें और भगवान के धाम की ओर बढ़ सकें।

यज्ञ का दार्शनिक एवं वैज्ञानिक आधार

प्राचीन वैदिक काल में यज्ञ करते हुए ऋषि-मुनि
प्राचीन वैदिक काल में यज्ञ करते हुए ऋषि-मुनि, वेद मंत्रों का उच्चारण, अग्नि में आहुतियाँ, सूर्य की रोशनी और शांत प्राकृतिक वातावरण

1. सृष्टि चक्र और यज्ञ का सम्बन्ध

प्रकृति में सब कुछ चक्रीय प्रक्रिया पर संचालित होता है – सूर्य प्रकाश देता है, पृथ्वी अन्न उत्पन्न करती है, वर्षा जल प्रदान करती है। यज्ञ इसी चक्र का मानवीय स्वरूप है जहाँ हम प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं का एक भाग दिव्य शक्तियों को अर्पित करते हैं।

2. पंचमहाभूतों के साथ सामंजस्य

हर यज्ञ में पाँच तत्वों का समन्वय होता है:

  • अग्नि (ऊर्जा स्रोत)
  • पृथ्वी (हवन सामग्री)
  • जल (शुद्धिकरण)
  • वायु (मंत्र संचार)
  • आकाश (दिव्य संवाद)

3. आधुनिक विज्ञान की दृष्टि में यज्ञ

हवन से निकलने वाले यज्ञीय धुएँ में वैज्ञानिकों ने रोगाणुनाशक गुण पाए हैं। स्विस वैज्ञानिक डॉ. हर्षुलर के अनुसार, “यज्ञ से वातावरण में ऑक्सीजन स्तर 15% तक बढ़ जाता है।”

यज्ञ के प्रकार एवं उनका महत्व

1. वैदिक यज्ञों का वर्गीकरण

यज्ञ प्रकारउद्देश्यउदाहरण
नित्य यज्ञदैनिक कर्तव्यसन्ध्यावन्दन, अग्निहोत्र
नैमित्तिक यज्ञविशेष अवसरराजसूय, अश्वमेध
काम्य यज्ञइच्छापूर्तिपुत्रेष्टि यज्ञ
प्रायश्चित्त यज्ञपापक्षयचान्द्रायण व्रत

2. गीता में वर्णित यज्ञ की व्यापक परिभाषा

भगवान कृष्ण ने यज्ञ को केवल हवन तक सीमित न रखते हुए व्यापक अर्थ दिया है:

  • ज्ञान यज्ञ: वेदाध्ययन
  • दान यज्ञ: परोपकार
  • तप यज्ञ: आत्मसंयम
  • योग यज्ञ: ध्यान साधना

कलियुग में यज्ञ का स्वरूप: संकीर्तन यज्ञ

1. कलियुग के विशेष यज्ञ का प्रमाण

“कृष्णवर्णं त्विषाकृष्णं सांगोपांगास्त्रपार्षदम्।
यज्ञैः संकीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः॥”

(श्रीमद्भागवत 11.5.32)

अर्थ: “कलियुग में बुद्धिमान जन भगवान कृष्ण के नाम रूपी यज्ञ द्वारा उनकी आराधना करेंगे।”

2. संकीर्तन के लाभ

  • सर्वसुलभ: धन या विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं
  • सामूहिक कल्याण: सामाजिक एकता स्थापित करता है
  • वैज्ञानिक प्रभाव: मंत्र जप से मस्तिष्क तरंगें सुधरती हैं

3. संकीर्तन की विधि

  1. नामजप: “हरे कृष्ण हरे राम” मंत्र का 108 बार जप
  2. भजन कीर्तन: सामूहिक भक्ति गीत
  3. श्रवण यज्ञ: भागवत कथा श्रवण

यज्ञ की आधुनिक प्रासंगिकता

1. पर्यावरण संरक्षण में योगदान

  • हवन जड़ी-बूटियाँ वायु शुद्ध करती हैं
  • प्लास्टिक मुक्त प्राकृतिक उपकरण

2. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • मंत्र जप से कोर्टिसोल स्तर 17% कम होता है (हार्वर्ड शोध)
  • सामूहिक यज्ञ सामाजिक अवसाद दूर करते हैं

3. आर्थिक समरसता

  • सामूहिक भोज (प्रसाद वितरण) से पोषण संबंधी असमानता कम होती है

निष्कर्ष: युगधर्म के रूप में यज्ञ

श्लोक 3.10 का सन्देश स्पष्ट है – “यज्ञ ही सृष्टि का नियम है।” आज जब मानवता भौतिकवाद में भटक रही है, तब यज्ञ की इस अवधारणा को नए स्वरूप में अपनाना आवश्यक है:

  1. व्यक्तिगत यज्ञ: नित्य पूजा-ध्यान
  2. पारिवारिक यज्ञ: संयुक्त भोजन एवं सत्संग
  3. सामाजिक यज्ञ: सामूहिक वृक्षारोपण एवं जल संरक्षण

जैसे शरीर के लिए रक्त संचार आवश्यक है, वैसे ही सृष्टि के लिए यज्ञ अनिवार्य है। “यज्ञ से ही धर्म, यज्ञ से ही समृद्धि, यज्ञ से ही मोक्ष” – इसी में मानव जाति का कल्याण निहित है।

“यज्ञो दैवो भवत्वेष नः प्रियः”
(हमारा यह यज्ञ देवताओं को प्रिय हो)

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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