श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 1 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 1 in Hindi): भगवद्गीता का तीसरा अध्याय “कर्मयोग” जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है – कर्म और बुद्धि का संतुलन। अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच हुए इस संवाद में न केवल युद्ध के मैदान का दर्शन छिपा है, बल्कि जीवन के हर पहलू में कर्म के महत्व को समझने की गहरी शिक्षा भी है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि कर्म के बिना ज्ञान अधूरा है और निष्काम कर्म ही सच्ची सफलता का मार्ग है।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 1 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 1)
श्लोक 3 . 1
Bhagavad Gita Chapter 3 Verse-Shloka 1
अर्जुन उवाच
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन |
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव || १ |
गीता अध्याय 3 श्लोक 1 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 1 in Hindi with meaning)

अर्जुन का संदेह: कर्म या बुद्धि? (श्लोक 3.1)
भागवत गीता अध्याय 3 के पहले श्लोक में अर्जुन भगवान कृष्ण से एक प्रश्न पूछते हैं:
भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 3.1:
अर्जुन उवाच
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥
अर्थ:
अर्जुन ने कहा – हे जनार्दन, हे केशव! यदि आप बुद्धि को सकाम कर्म से श्रेष्ठ समझते हैं, तो फिर आप मुझे इस घोर युद्ध में क्यों लगाना चाहते हैं?
अर्जुन का यह प्रश्न उनकी मानसिक उलझन को दर्शाता है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि यदि बुद्धि और ज्ञान कर्म से श्रेष्ठ हैं, तो फिर उन्हें इस युद्ध में भाग क्यों लेना चाहिए। यह प्रश्न आज के समय में भी प्रासंगिक है, जहां लोग अक्सर कर्म से भागने की कोशिश करते हैं।
कर्मयोग का सार: कर्म के बिना ज्ञान अधूरा है
श्रीकृष्ण अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कर्मयोग के सिद्धांत को समझाते हैं। उनका कहना है कि बुद्धि और ज्ञान तभी सार्थक होते हैं जब वे कर्म के साथ जुड़े हों। केवल ज्ञान प्राप्त करके बैठ जाना या कर्म से भागना सही मार्ग नहीं है।
कर्मयोग के मुख्य बिंदु:
- कर्म का महत्व: जीवन में कर्म करना अनिवार्य है। बिना कर्म के कोई भी व्यक्ति सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।
- निष्काम कर्म: कर्म करते समय फल की इच्छा न रखना ही सच्चा कर्मयोग है।
- बुद्धि और कर्म का संतुलन: ज्ञान और बुद्धि कर्म को सही दिशा देते हैं, लेकिन कर्म के बिना ज्ञान निष्क्रिय हो जाता है।
- कृष्णभावनामृत: हर कर्म को भगवान को समर्पित करके करना ही सच्चा कर्मयोग है।
अर्जुन की भ्रांति और कृष्ण का मार्गदर्शन
अर्जुन को लगता था कि युद्ध से दूर भागकर वे शांति प्राप्त कर लेंगे, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि यह केवल एक भ्रम है। जीवन में हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो।
कर्मयोग की शिक्षाएं:
- कर्तव्यपालन ही सच्चा धर्म है।
- कर्म से भागने के बजाय उसे सही ढंग से करना चाहिए।
- ज्ञान और कर्म दोनों का समन्वय ही मोक्ष का मार्ग है।
आधुनिक जीवन में कर्मयोग की प्रासंगिकता
आज के समय में कर्मयोग की शिक्षा और भी महत्वपूर्ण हो गई है। हम अक्सर अपने कर्तव्यों से भागने की कोशिश करते हैं या फिर कर्म करते समय फल की चिंता में उलझ जाते हैं। कर्मयोग हमें यह सिखाता है कि बिना फल की इच्छा के अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्ची सफलता है।
कर्मयोग का आधुनिक अर्थ:
- कार्यस्थल पर ईमानदारी और समर्पण के साथ काम करना।
- परिवार और समाज के प्रति अपने दायित्वों को निभाना।
- स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के लिए कर्म करना।
निष्कर्ष: कर्मयोग ही जीवन का सार है
भगवद्गीता का यह अध्याय हमें यह सीख देता है कि जीवन में सफलता और शांति प्राप्त करने के लिए कर्म और ज्ञान दोनों का संतुलन आवश्यक है। अर्जुन के प्रश्न और श्रीकृष्ण के उत्तर से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें अपने कर्तव्यों से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए, बल्कि उन्हें पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाना चाहिए।
कर्मयोग का संदेश:
“कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”
यही सच्चा जीवन दर्शन है।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस