बसंत पंचमी के पावन अवसर पर ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के साथ मां सरस्वती की विशेष चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को ज्ञान, कला और धन की प्राप्ति होती है। माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हर साल यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा के साथ बच्चों का उपनयन संस्कार और गुरुकुलों में शिक्षा की शुरुआत भी की जाती है।
ऐसा माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन सरस्वती चालीसा का पाठ करने से पूजा पूर्ण मानी जाती है और व्यक्ति को विद्या, संगीत, कला और धन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

बसंत पंचमी पर सरस्वती चालीसा के लाभ
यह मान्यता है कि सरस्वती चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के ज्ञान के द्वार खुलते हैं। इसका नियमित पाठ मन को शांत और एकाग्रचित्त बनाए रखता है। विद्यार्थियों के लिए इसका पाठ विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। सरस्वती चालीसा का पाठ करने से कुंडली में बुध ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। बुध ग्रह बुद्धि, वाणी, संगीत और व्यापार का कारक होता है। इस चालीसा के पाठ से व्यक्ति का तेज बढ़ता है और उसे हर क्षेत्र में यश, सफलता और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
बसंत पंचमी कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का आरंभ 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर होगा। यह तिथि अगले दिन, यानी 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के आधार पर, बसंत पंचमी का पर्व इस वर्ष 2 फरवरी को मनाया जाएगा।
॥ श्री सरस्वती चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
सरस्वती चालीसा चौपाई
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी.करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता.सकल विश्व अंदर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती.जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा.पाप हीन करती महि तारा॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा.तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई.आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता.तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना.भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा.केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी.दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहुता.तेहि न धरइ चित्त सुंदर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी.विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा.कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना.बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा.फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला.बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी.पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता.छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी.सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा.बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा.छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई.रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा.सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना.निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी.जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी.नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा.दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता.कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै.कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे.अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में.हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई.संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई.सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा.होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै.संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा.निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा.बंदी पाश दूर हो सारा॥
मोहे जान अज्ञनी भवानी.कीजै कृपा दास निज जानी ॥
॥ दोहा ॥
माता सूरज कांति तव, अंधकार मम रूप.डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु.मुझ अज्ञानी अधम को, आश्रय तू ही दे दातु ॥॥
बसंत पंचमी महत्व
बसंत पंचमी, जिसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू संस्कृति और परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस पर्व का महत्व जीवन के कई पहलुओं से जुड़ा है, जिनमें सांस्कृतिक, धार्मिक और कृषि आधारित तत्व प्रमुख हैं।
सांस्कृतिक दृष्टि से यह त्यौहार समुदायों के एक साथ आने का प्रतीक है, जो समृद्धि और जीवन के नए उत्साह को दर्शाता है। धार्मिक रूप से, बसंत पंचमी ज्ञान, बुद्धि और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। इस दिन भक्त शिक्षा, रचनात्मकता और आध्यात्मिक विकास के लिए मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। वसंत का आगमन नई शुरुआत और प्रचुरता का संदेश लेकर आता है, जो जीवन की चक्रीय प्रकृति की याद दिलाता है।
बसंत पंचमी देवी सरस्वती के सम्मान के साथ-साथ भगवान कृष्ण और राधा के दिव्य प्रेम को भी दर्शाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करके ज्ञान और बुद्धि प्राप्त की थी। इस अवसर पर सरसों के पीले फूल खिलते हैं, जो पर्व की शोभा बढ़ाते हैं और समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक माने जाते हैं।
इस पर्व का धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही यह सामूहिक उत्सवों और सांस्कृतिक आनंद का भी प्रतीक है। परिवार और मित्र एक साथ मिलकर शुभकामनाएं देते हैं और उत्सव की भावना में भाग लेते हैं।
बसंत पंचमी के रीति-रिवाज और परंपराएं वसंत के उल्लास और ज्ञान की खोज को दर्शाती हैं। यह त्यौहार न केवल रंगों और अनुष्ठानों से भरा होता है, बल्कि नई उम्मीदों और खुशहाली का संदेश भी देता है। इस शुभ पर्व को मनाने की भावना में डूबते हुए इसके अनमोल महत्व और विविध परंपराओं को जानने का अवसर मिलता है
ALSO READ:-
Basant Panchami 2025: साल 2025 में कब है बसंत पंचमी, जाने तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि