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Ajamila Ki Katha: अजामिल की कथा, भगवान के नामोच्चारण से पापमुक्ति की दिव्य महिमा

श्रीमद्भागवत में भगवान के शरणागत भक्तों की महिमा वर्णित है। गुरु भगवान ने कहा है कि भगवान के शरण में रहने वाले विरले भक्तों के पाप भगवान के नामोच्चारण से उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्य के प्रकाश से कोहरा। जिस व्यक्ति ने अपने मन रूपी मधुकर को भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमल रूपी मकरंद का एक बार भी आस्वादन करा दिया, उसने सारे प्रायश्चित कर लिए। ऐसे भक्त कभी यमराज या उनके पाशधारी दूतों को स्वप्न में भी नहीं देखते।

अजामिल कौन थे ?

अजामिल, भागवत पुराण के छठे स्कंध की एक प्रमुख कथा के नायक हैं। वे एक धर्मनिष्ठ, सदाचारी और बुद्धिमान व्यक्ति थे तथा भगवान विष्णु के भक्त भी थे। अजामिल का जन्म प्राचीन कन्नौज (कान्यकुब्ज) के एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी कहानी यह दर्शाती है कि भगवान के नाम के उच्चारण से पापी व्यक्ति भी अपने पापों की प्रवृत्ति से मुक्त हो सकता है।

अजामिल शब्द का अर्थ क्या है?

‘अजामिल’ शब्द का अर्थ माया से जुड़ा हुआ या ब्रह्मा से संबंध रखने वाला भी होता है।

अजामिल ब्राह्मण की कथा


कन्नौज के एक ब्राह्मण अजामिल की कथा इसी संदर्भ में आती है। अजामिल प्रारंभ में एक आदर्श ब्राह्मण था। वह शास्त्रों का ज्ञाता, शीलवान, सदाचारी, और विनम्र था। उसने गुरु, अग्नि, अतिथि, और वृद्धजनों की सेवा की थी। अहंकार उसे छू भी नहीं सका था। लेकिन एक दिन, वन में फल-फूल लाते समय उसने एक कामी और निर्लज्ज शूद्र को वेश्या के साथ अर्द्धनग्न अवस्था में देखा। इस दृश्य ने उसके मन में काम का संचार कर दिया।अजामिल ने अपने ज्ञान और धैर्य से काम वासना को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहा। वह वेश्या के प्रति आसक्त हो गया और अपने धर्म से विमुख हो गया। उसने अपने पिता की सारी संपत्ति वेश्या को दे दी और अपनी पत्नी को त्याग दिया। धन प्राप्ति के लिए उसने चोरी, लूटपाट, और छल का सहारा लिया। इस प्रकार, 88 वर्षों तक उसने पापमय जीवन बिताया।

अजामिल का उद्धार कैसे हुआ?


अजामिल के सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण था। वृद्धावस्था में अजामिल ने अपना सारा ह्रदय नारायण को समर्पित कर दिया। उसका जीवन नारायण की तोतली बोली और खिलखिलाहट के इर्द-गिर्द घूमने लगा। उसे यह भान ही नहीं हुआ कि मृत्यु उसके सिर पर आ चुकी है।
मृत्यु का समय आते ही अजामिल ने भयावने यमदूतों को देखा। उन्होंने उसे फांसी के फंदे में जकड़ लिया। भयभीत होकर अजामिल ने अपने पुत्र को पुकारा- “नारायण! नारायण!” लेकिन यह पुकार अप्रत्यक्ष रूप से भगवान विष्णु का नाम बन गई। भगवान के पार्षद तुरंत वहां पहुंचे और यमदूतों को रोक दिया।
यमदूतों ने कहा कि अजामिल ने शास्त्राज्ञा का उल्लंघन किया है। वह वेश्या के अन्न से जीवन यापन करता रहा और पापों में लिप्त रहा। इसने नरक की यातनाएं भोगने का अधिकार प्राप्त किया है।

विष्णुदूतों ने यमदूतों को उत्तर दिया कि अजामिल ने “नारायण” का उच्चारण किया है। यह भगवान का परम कल्याणकारी नाम है, जो सबसे बड़े पापों को भी नष्ट कर देता है। चाहे जानबूझकर या अनजाने में, भगवान का नाम लेने से पाप समाप्त हो जाते हैं।

भगवान के नाम की अद्भुत महिमा

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भगवान का नाम सूर्य के समान है। जैसे सूर्य का प्रकाश अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही भगवान का नाम पापों को भस्म कर देता है। यहां तक कि यदि कोई मजाक, क्रोध, या अपमान में भी भगवान का नाम ले, तो भी उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।
यमदूतों और विष्णुदूतों के संवाद को सुनने के बाद अजामिल के मन में गहरी ग्लानि उत्पन्न हुई। उसने अपने पापमय जीवन का प्रायश्चित करने का निश्चय किया। वह हरिद्वार चला गया और गंगा के तट पर तपस्या करने लगा। उसके ह्रदय में भगवान के प्रति भक्ति का संचार हुआ। उसने अपने मन, इंद्रियों, और बुद्धि को विषयों से अलग कर भगवान के श्रीचरणों में समर्पित कर दिया।

अजामिल की मृत्यु


अजामिल ने गंगा के तट पर अपने शरीर का त्याग किया। भगवान के पार्षद स्वर्णमय विमान में उसे बैकुंठ लेकर चले गए।

शिक्षा: भगवान के नाम की शक्ति
भगवान का नाम पापों को नष्ट करने में अद्वितीय है।जो भगवान का आश्रय लेते हैं, वे यमराज के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाते हैं।
भगवान के नाम का कीर्तन बड़े से बड़े पापों को मिटा सकता है।इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि भगवान का नाम ही मानव जीवन का सबसे बड़ा सहारा है। भगवान का स्मरण और उनकी शरणागति ही जीवन का असली उद्देश्य है।

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