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Govardhan Puja 2024 :गोवर्धन पूजा 2024 कब है, तिथि, पूजा विधि और श्री कृष्ण से जुड़ी पौराणिक कथा

गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट या बलिदान के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की महिमा का गुणगान करने वाला पर्व है। यह लेख गोवर्धन पूजा के महत्व, तिथि, पूजा विधि, और इससे जुड़ी पौराणिक कथा को विस्तार से बताएगा।

Govardhan Puja 2024

गोवर्धन पूजा का धार्मिक महत्व (Govardhan Puja Significance)

गोवर्धन पूजा का धार्मिक महत्व बहुआयामी है। यह पर्व हमें कई महत्वपूर्ण संदेश देता है:

  • भगवान कृष्ण की लीलाओं का स्मरण: गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के अभिमान को चकनाचूर करने और गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा करने की लीला का स्मरण दिवस है। इस दिन हम कृष्ण की लीलाओं का स्मरण करते हुए उनकी दिव्य शक्ति और ब्रजवासियों के प्रति उनके प्रेम का गुणगान करते हैं।
  • अन्न और गोवंश के प्रति कृतज्ञता: गोवर्धन पूजा अन्न और गोवंश के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व भी है। प्राचीन काल से ही भारत में कृषि और पशुपालन का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि हमारा जीवन अन्नदाता किसानों और गोवंश पर निर्भर करता है। इस दिन विभिन्न प्रकार के व्यंजनों और मिठाइयों से भगवान गोवर्धन की पूजा की जाती है, जिसे अन्नकूट कहा जाता है। अन्नकूट का अर्थ है “अन्न का ढेर”। यह प्रतीकात्मक रूप से अन्न के प्रति हमारे आभार का प्रकटन है।
  • पर्यावरण संरक्षण का संदेश: गोवर्धन पर्वत प्रकृति का प्रतीक है। गोवर्धन पूजा हमें प्रकृति, विशेष रूप से पर्वतों और गोवंश के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का संदेश देती है। यह हमें पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी याद दिलाती है। पर्वत हमें जलवायु को संतुलित रखने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का पाठ पढ़ाते हैं। गोवंश भी पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। गोबर खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है और गोमूत्र औषधीय गुणों से भरपूर होता है।

गोवर्धन पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्त (Govardhan Puja 2024 Tithi)

गोवर्धन पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्तों को जानना आवश्यक है, ताकि आप पूजा को विधिवत रूप से संपन्न कर सकें।

  • गोवर्धन पूजा की तिथि:
    • प्रतिपदा तिथि आरंभ: 01 नवंबर 2024 को शाम 06:16 बजे से
    • प्रतिपदा तिथि समाप्त: 02 नवंबर 2024 को रात्रि 08:21 बजे
    • उदयातिथि के अनुसार इस वर्ष गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी।
  • गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त:
    • प्रदोष मुहूर्त: 02 नवंबर 2024 को शाम 06:10 बजे से 08:21 बजे तक (यह मुख्य रूप से पूजा करने का समय माना जाता है)
    • अभिजीत मुहूर्त: 02 नवंबर 2024 को दोपहर 12:13 बजे से 12:58 बजे तक (कुछ लोग इस समय में भी पूजा करना शुभ मानते हैं)

गोवर्धन पूजा की विधि (Govardhan Puja Vidhi)

गोवर्धन पूजा को विधिवत रूप से संपन्न करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:

गोवर्धन पर्वत बनाना: गोवर्धन पूजा की तैयारी गोबर, मिट्टी और लकड़ी से गोवर्धन पर्वत का एक छोटा मॉडल बनाकर शुरू होती है। आप गाय के गोबर का उपयोग कर सकते हैं, जिसे सूखने के लिए कुछ दिन पहले ही एकत्र कर लें। मिट्टी का उपयोग करके पहाड़ों जैसी आकृति दें और उसमें छोटी-छोटी टहनियां लगाकर वृक्षों का आभास कराएं। आप चाहें तो इस मॉडल को सजाने के लिए फूलों, पत्तियों और अनाजों का भी उपयोग कर सकते हैं।

स्नान और श्रृंगार: अगले चरण में भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत (यदि आप उनकी कोई मूर्ति रख रहे हैं) को स्नान कराएं। आप उन्हें गंगाजल या साफ पानी से स्नान करा सकते हैं। इसके बाद, उन्हें नए वस्त्र पहनाएं। आप उन्हें सुंदर वस्त्र अर्पित कर सकते हैं, साथ ही माथे पर तिलक लगाएं और पुष्प माला से उनका श्रृंगार कर सकते हैं।

दीप प्रज्वलन और पूजा की सामग्री तैयार करना: अब पूजा स्थल को दीपक जलाकर शुभ बनाएं। आप घी का दीपक जला सकते हैं और धूप और अगरबत्ती जलाकर वातावरण को सुगंधित कर सकते हैं। इसके साथ ही पूजा की थाली तैयार करें। थाली में रोली, मौली, अक्षत (बिना टूटे चावल), हल्दी, सिंदूर, फल, मिठाई और पान आदि रखें। आप अपने इच्छानुसार अन्य पूजन सामग्री भी शामिल कर सकते हैं।

नैवेद्य अर्पण: भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत को नैवेद्य अर्पित करें। नैवेद्य का अर्थ है भगवान को भोजन का प्रसाद चढ़ाना। गोवर्धन पूजा में पारंपरिक रूप से विभिन्न प्रकार के व्यंजनों और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। इसमें शाकाहारी व्यंजन जैसे दाल, सब्जी, पूड़ी, पापड़, खीर आदि शामिल हो सकते हैं। आप अपने क्षेत्र के पारंपरिक व्यंजनों को भी शामिल कर सकते हैं। मिठाइयों में लड्डू, पेठा, हलवा आदि का भोग लगाया जा सकता है।

परिक्रमा और मंत्र जाप: अब गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय आप “ॐ गोवर्धन धारिणी मुरारे प्रसीद प्रसीद” मंत्र का जाप कर सकते हैं। आप अपनी श्रद्धा अनुसार परिक्रमा की संख्या निर्धारित कर सकते हैं। परिक्रमा के बाद भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की आरती उतारें। आरती के लिए आप थाली में कपूर जलाकर घंटी बजा सकते हैं।

बृहस्पति पूजा: कुछ क्षेत्रों में गोवर्धन पूजा के दिन गुरु बृहस्पति की भी पूजा की जाती है। गुरु बृहस्पति को ज्ञान और विवेक का देवता माना जाता है। आप उन्हें पीले फूल, फल और मिठाई अर्पित कर सकते हैं।

अन्नकूट प्रसाद का वितरण और ग्रहण: अंत में, अन्नकूट का प्रसाद वितरित करें और ग्रहण करें। अन्नकूट का प्रसाद अपने परिवार, मित्रों और रिश्तेदारों में बांटें। यह प्रसाद ग्रहण करने से पहले भगवान का भोग लगाना न भूलें।

ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व (Govardhan Puja Significance)

ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि यहीं पर भगवान कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाया था। इसलिए ब्रज में गोवर्धन पूजा को बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। साथ ही परिक्रमा के लिए विशाल गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। इस आकृति को गाय के गोबर से बनाया जाता है और उस पर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों और मिठाइयों को सजाया जाता है। ब्रजवासी इस गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करके परंपरागत लोकगीत गाते हैं और नृत्य करते हैं। यह दृश्य ब्रज की अनूठी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा (Govardhan Puja Katha)

गोवर्धन पूजा की कथा भगवान कृष्ण और इंद्र के बीच हुए संघर्ष से जुड़ी है।

द्वापर युग में भगवान इंद्र को अपने अहंकार के कारण यह अहसास हो गया था कि वही सर्वशक्तिमान हैं। उन्होंने ब्रजवासियों को डराने के लिए मूसलधार बारिश शुरू कर दी। ब्रजवासी भगवान कृष्ण के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की गुहार लगाई। कृष्ण ने ब्रजवासियों को डरने के लिए नहीं कहा और गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली और सात दिनों तक इंद्र की भारी बारिश से बचाव पाया। अंततः इंद्र को अपना अभिमान त्यागना पड़ा और उन्होंने कृष्ण की दिव्य शक्ति को स्वीकार किया।

यह कथा हमें यह संदेश देती है कि हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए। प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। भगवान कृष्ण की लीलाओं के माध्यम से गोवर्धन पूजा हमें प्रकृति, कर्म और भक्ति का महत्व सिखाती है।

गोवर्धन पूजा का पर्व हमें कृष्ण भक्ति, पर्यावरण संरक्षण और कृषि के महत्व का संदेश देता है। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी भगवान हमारी रक्षा करते हैं। आइए हम इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाएं, प्रकृति का सम्मान करें और भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करें।

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