आज नहाये खाये के साथ छठ महापर्व शुरू हो रहा है। छठ पूजा, विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है और इसे धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व दिया गया है। दिवाली के कुछ ही दिनों बाद आने वाले इस महापर्व की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होती है, जिसे नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है।
छठ पूजा व्रत कथा: राजा प्रियव्रत की कथा
छठ पर्व के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। सबसे प्रचलित कथा राजा प्रियव्रत से जुड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी रानी मालिनी संतान सुख से वंचित थे। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने महर्षि कश्यप की शरण ली। महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत को यज्ञ का आयोजन करने का निर्देश दिया, जिसके अंतर्गत रानी को विशेष आहुति की खीर ग्रहण करने के लिए कहा गया। खीर ग्रहण करने के बाद रानी गर्भवती हुईं, लेकिन दुर्भाग्यवश संतान मृत जन्मा।
इस घटना से राजा प्रियव्रत और उनकी रानी बहुत दुखी हुए और राजा अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए। वहां देवी षष्ठी प्रकट हुईं और राजा को उनकी आराधना करने का आशीर्वाद दिया। देवी षष्ठी ने राजा से कहा कि यदि वह उनकी विधिपूर्वक पूजा करेंगे तो उनकी संतान जीवित होगी। राजा ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को देवी षष्ठी की पूजा कर छठ व्रत रखा, और उनकी श्रद्धा के फलस्वरूप उनकी रानी ने स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। तब से इस तिथि को छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा।
महाभारत काल और छठ व्रत
महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि माता कुंती के पुत्र कर्ण, जिन्हें सूर्य का पुत्र माना जाता है, प्रतिदिन जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। सूर्य की कृपा से ही कर्ण एक महान योद्धा बने और उनके जीवन में अत्यंत सफलता मिली। इसी कारण छठ व्रत में सूर्य उपासना का महत्व है।
महाभारत की एक अन्य कथा के अनुसार, जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए थे, तब द्रौपदी ने अपने राज्य की पुनः प्राप्ति के लिए छठ व्रत किया था। देवी षष्ठी द्रौपदी से प्रसन्न हुईं और उनकी कृपा से पांडवों को उनका राज्य पुनः प्राप्त हुआ।
छठ पूजा की सामग्री और उसकी महत्ता
छठ पूजा की पूजा सामग्री में भी पवित्रता का खास महत्व होता है। इस पर्व में बांस की टोकरियों, सूप, मिट्टी के दीये, और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। व्रतधारी पूजा के दौरान सूर्य को जल और अर्घ्य देने के लिए तांबे, पीतल या कांसे के बर्तन का उपयोग करते हैं। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू, फलों में नारियल, केला, सेब, और गन्ना आदि शामिल होते हैं।
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