भगवान शिव की एक अद्भुत और विनाशकारी शक्ति है उनके मुख से प्रकट हुई भयंकर ज्वाला, जिसे कालाग्नि के नाम से जाना जाता है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पौराणिक घटना है, लेकिन यह ज्वाला क्यों प्रकट हुई और इसके अन्य पहलू क्या हैं, यह जानना बेहद रोचक है। भगवान शिव को संहारक के रूप में जाना जाता है और उनकी कई रहस्यमयी एवं विनाशकारी शक्तियां हैं। उन्हीं में से एक शक्ति है कालाग्नि, जिसे रुद्राग्नि के नाम से भी पुकारा जाता है।
यह अद्भुत ज्वाला भगवान शिव के मुख से प्रकट हुई थी। रुद्राभिषेक पूजा के दौरान भगवान शिव की आराधना करते समय कालाग्नि का ध्यान और स्तुति विशेष रूप से की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इससे भक्तों को भगवान शिव की कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है। बहुत कम लोग इस शक्ति और इसकी उत्पत्ति के पीछे के रहस्यमय अध्यात्म से परिचित हैं। तो आइए, इसके आध्यात्मिक महत्व और प्रकट होने की कथा को समझते हैं।
कालाग्नि या रुद्राग्नि का महत्व
भगवान शिव की यह दिव्य ज्वाला सृष्टि के विनाश और सृजन दोनों का प्रतीक मानी जाती है। शिव को सृष्टि के संहारक और सृजनकर्ता दोनों रूपों में पूजा जाता है, और कालाग्नि इन दोनों शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है। यह ज्वाला तब प्रकट हुई जब संसार में अधर्म, पाप और अज्ञानता का अत्यधिक विस्तार हो गया था। इसे शिव की संहारक शक्ति से जोड़कर देखा जाता है, जो सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक विनाश करती है।
शिव के मुख से प्रकट होने वाली यह ज्वाला सृष्टि के अंत (प्रलय) का प्रतीक मानी जाती है। इसे कालाग्नि रुद्र भी कहा जाता है, जो प्रलयकाल में ब्रह्मांड का समापन करता है। यह ज्वाला अत्यंत प्रचंड, विनाशकारी और दैवीय ऊर्जा से परिपूर्ण मानी जाती है। इसे शिव की तीसरी आँख से प्रकट होने वाली अग्नि के रूप में भी दर्शाया गया है, जो अधर्म और बुराई को भस्म कर देती है।
रुद्राग्नि को अधर्म, अज्ञानता और नकारात्मकता का नाश करने वाली शक्ति माना गया है। यह ज्वाला उन सभी बाधाओं को समाप्त करती है जो धर्म और सत्य के मार्ग में रुकावट डालती हैं। कालाग्नि का ध्यान और साधना साधक को आत्मा की शुद्धि और उच्च आध्यात्मिक स्तर की प्राप्ति में सहायक होती है। यह आत्मज्ञान और आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है, जो साधक को ईश्वर से जोड़ने का मार्ग प्रदान करती है।
ALSO READ:-
Mahabharat: शिखंडी कैसे बना एक स्त्री से पुरुष? क्यों लेना चाहता था वह भीष्म पितामह से बदला?
क्यों धारण किया था हनुमान जी ने शेर का रूप? जाने इसके पीछे की पौराणिक कथा