हिंदू धर्म में पूजा-अर्चना का सदियों पुराना इतिहास रहा है। यह आत्मिक जुड़ाव और ईश्वर के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। पूजा के विविध अंग होते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण अंग है – आरती। आरती का शाब्दिक अर्थ है “प्रकाश से पूजा करना”। पूजा के पश्चात आरती करने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। यह सरल किंतु सार्थक अनुष्ठान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, अपितु इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी विद्यमान हैं। आइए, इस लेख में हम गहराई से जानें कि पूजा के बाद आरती का क्या महत्व है और इससे हमें क्या लाभ प्राप्त होते हैं।

आरती का धार्मिक महत्व (Aarti ka Mahatva)
आरती का धार्मिक महत्व अनेक आयामों में फैला हुआ है। यह ईश्वर के प्रति कृतज्ञता, समर्पण और आशीर्वाद प्राप्ति का एक मार्ग है।
- ईश्वर का स्वागत: आरती को ईश्वर के स्वागत का प्रतीक माना जाता है। जिस प्रकार हम किसी अतिथि के आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत करते हैं, उसी प्रकार आरती के माध्यम से हम ईश्वर का उनकी पूजा स्थली में आगमन पर स्वागत करते हैं। कपूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध करती है और दीप की ज्योति ईश्वर के दिव्य प्रकाश का प्रतीक बन जाती है।
- आत्मसमर्पण: आरती ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। पूजा के विधिवत समापन के पश्चात जब हम आरती करते हैं, तो हम अपनी इंद्रियों, मन और बुद्धि को ईश्वर के चरणों में अर्पित कर देते हैं। इस समर्पण के माध्यम से हम ईश्वर से कृपा और मार्गदर्शन की कामना करते हैं।
- आशीर्वाद प्राप्ति: आरती को ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करने का एक प्रभावी साधन माना जाता है। आरती की ज्योति को ईश्वर की दिव्य ज्योति का प्रतीक माना जाता है। ज्योति को अपने और पूजा स्थल पर घुमाने से हम उस दिव्य ऊर्जा को ग्रहण करते हैं, जिससे ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- पापनाश और पुण्यलाभ: ऐसा माना जाता है कि आरती करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। आरती के दौरान जप किए जाने वाले मंत्रों में ईश्वर के गुणों का वर्णन होता है, जिससे मन शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: हिंदू धर्म में मोक्ष को जीवन का अंतिम लक्ष्य माना जाता है। माना जाता है कि विधि-विधान से की गई निरंतर पूजा-अर्चना और आरती करने से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
आरती का वैज्ञानिक महत्व
धर्म और विज्ञान परस्पर विरोधी नहीं हैं, अपितु दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। आरती का वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है।
- वातावरण शुद्धि: आरती में उपयोग किए जाने वाले कपूर और घी वातावरण को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। कपूर जलने से वातावरण में उपस्थित बैक्टीरिया नष्ट होते हैं और वातावरण शुद्ध होता है। साथ ही, घी के दीपक से निकलने वाली ज्योति वातावरण को प्रकाशित करती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मनःशांत का अनुभव: आरती करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है। आरती के दौरान जप किए जाने वाले मंत्रों में एकाग्रता और शांति लाने वाले शब्द होते हैं। साथ ही, दीपक की ज्योति को देखने से आंखों को विश्राम मिलता है, जिससे मन को शांति मिलती है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: आरती में उपयोग किए जाने वाले कपूर और घी के जलने से वातावरण में सकारात्मक आयन उत्पन्न होते हैं। ये आयन वायु को शुद्ध करते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
- एकाग्रता और स्मरण शक्ति में वृद्धि: आरती के दौरान जप किए जाने वाले मंत्रों में एक विशेष लय और ताल होता है। इस लय और ताल पर ध्यान केंद्रित करने से मन एकाग्र होता है और स्मरण शक्ति बढ़ती है। साथ ही, आरती के दौरान दीपक की ज्योति पर ध्यान केंद्रित करने से भी एकाग्रता में वृद्धि होती है।
- अच्छी नींद: आरती करने का समय प्रायः संध्या काल होता है। संध्या काल में नीले रंग का प्रकाश कम हो जाता है, जिससे शरीर में मेलाटोनिन नामक हार्मोन का उत्पादन बढ़ता है। यह हार्मोन नींद के लिए आवश्यक होता है। अतः, आरती करने से अच्छी नींद आती है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार: आरती के दौरान जप किए जाने वाले मंत्रों में सकारात्मक भावों और ईश्वर के गुणों का वर्णन होता है। इन मंत्रों को जपने और सुनने से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच बढ़ती है।
आरती के विभिन्न स्वरूप
हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले विभिन्न देवी-देवताओं के लिए आरती के अलग-अलग स्वरूप होते हैं। प्रत्येक आरती में उस देवता से जुड़े विशेष मंत्रों का जप किया जाता है। उदाहरण के लिए:
- शिव आरती में “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप किया जाता है।
- विष्णु आरती में “ॐ विष्णवे नमः” मंत्र का जप किया जाता है।
- हनुमान आरती में “ॐ बजरंगबली हनुमात” मंत्र का जप किया जाता है।
- गणेश आरती में “ॐ गणेशाय नमः” मंत्र का जप किया जाता है।
इसके अतिरिक्त, विभिन्न अवसरों पर भी विशेष आरती की जाती है, जैसे – गृह आरती, ग्रह शांति के लिए आरती, संतान प्राप्ति के लिए आरती आदि।
आरती करने की विधि (Aarti ki Vidhi)
आरती करने की विधि सरल है, किंतु विधि-विधान का पालन करना आवश्यक होता है। आइए, जानें आरती करने की सरल विधि:
- सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ-सुथरा कर लें।
- एक थाली में दीपक जलाएं। आप घी का दीपक या तेल का दीपक जला सकते हैं।
- थाली में कपूर, अगरबत्ती, फूल और चंदन रखें। आप अपने इष्टानुसार अन्य पूजन सामग्री भी रख सकते हैं।
- दीपक को धूप, गंगाजल और पुष्पों से अर्पित करें।
- अपने पूज्य देवता का ध्यान करें और आरती का निर्धारित मंत्र का जप करें।
- दीपक को अपने हाथों में लेकर घुमाएं। दीपक को घुमाते समय इस बात का ध्यान रखें कि ज्योति बुझ न जाए।
- आरती की ज्योति को अपने माथे, हृदय और कंधों पर घुमाएं।
- आरती समाप्त होने पर प्रसाद वितरण करें। प्रसाद के रूप में फल, मिठाई आदि का वितरण किया जा सकता है।
निष्कर्ष
आरती पूजा का एक अभिन्न अंग है। यह न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है, अपितु इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी विद्यमान हैं। आरती करने से हमें ईश्वर के साथ जुड़ने का अवसर मिलता है। आरती के माध्यम से हम ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आरती करने से हमें मानसिक और शारीरिक रूप से भी लाभ प्राप्त होते हैं।