चैत्र माह में शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है, जिसमें माता शीतला की पूजा की जाती है और बासी भोजन का भोग अर्पित किया जाता है। 

इस व्रत की विशेष धार्मिक मान्यता होती है, और मान्यता है कि श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करने पर आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में समृद्धि आती है। 

होली के आठ दिन बाद आने वाली यह तिथि चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होती है, जब महिलाएं पूरे श्रद्धा भाव से उपवास रखती हैं। 

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इस वर्ष शीतला अष्टमी किस दिन मनाई जाएगी और इसकी पूजा विधि क्या होगी, यह जानने के लिए आगे पढ़ें। 

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 23 मिनट से प्रारंभ होकर 23 मार्च को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी। 

उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए, शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च, शनिवार को रखा जाएगा। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखकर और विधि-विधान से पूजा कर शीतला माता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। 

शीतला अष्टमी की पूजा की तैयारियां एक दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। इस दिन बासी भोजन को प्रसाद के रूप में शीतला माता को अर्पित किया जाता है और भक्त इसे ग्रहण करते हैं। पूजा के दिन प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं और व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा की थाली में मीठे चावल, हलवा, दीपक, रोली, अक्षत, वस्त्र, बड़कुले की माला, सिक्के और हल्दी रखी जाती है।

इसके बाद शीतला माता को व्रत की सामग्री अर्पित की जाती है, शीतला अष्टमी की कथा का पाठ किया जाता है और आरती के साथ पूजा संपन्न होती है। शीतला अष्टमी को बसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन बासी भोजन का विशेष महत्व होता है। 

इसे ठंड के समापन का प्रतीक भी माना जाता है। एक दिन पूर्व ही मीठे चावल, पूरी, पूए और हलवा आदि प्रसाद के रूप में तैयार किए जाते हैं, जिन्हें पहले माता को अर्पित किया जाता है और फिर भक्तों में वितरित किया जाता है। 

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