महाकुंभ में पूर्ण पुण्य फल प्राप्त करने के लिए पंचकोसी परिक्रमा आवश्यक मानी जाती है।
यह परिक्रमा संगम से शुरू होकर प्रयागराज के सभी मुख्य तीर्थों का दर्शन करते हुए 24 जनवरी को समाप्त होती है।
परिक्रमा का समापन एक विशाल भंडारे के साथ होता है, जिसमें अखाड़े के नागा संन्यासी, मण्डलेश्वर, महामण्डलेश्वर और आम श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।
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प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा गया है, जो पांच योजन और 20 कोस में विस्तृत है।
यहां कई ऐसे तीर्थ हैं, जिनकी परिक्रमा और दर्शन किए बिना महाकुंभ का पुण्य फल प्राप्त नहीं होता।
पंचकोसी परिक्रमा इसी संदर्भ में की जाती है, जिसमें जूना अखाड़ा ने अपनी परंपरा का निर्वाह करते हुए पांच दिवसीय परिक्रमा की शुरुआत की। महंत हरिगिरी के नेतृत्व में जूना अखाड़े के साधु-संतों ने गंगा पूजन कर परिक्रमा की शुरुआत की।
यह परिक्रमा पूरे पांच दिन तक चलती है, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती के छह तटों का दर्शन होता है।
इन तटों को मिलाकर तीन अन्तर्वेदियां बनाई गई हैं - अंतर्वेदी, मध्य वेदी और बहिर्वेदी। इन वेदियों में कई तीर्थ, उप तीर्थ और आश्रम शामिल हैं।
महाकुंभ का महा पुण्य अर्जित करने के लिए पंचकोसी परिक्रमा अवश्य करें, क्योंकि इससे इन तीर्थों के दर्शन से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
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