पौराणिक कथाओं के अनुसार मान्यता है कि भगवान विष्णु को मिले एक श्राप से हुई थी महाकुंभ की शुरुआत 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र देव का एक पुत्र था, जिसका नाम शंख था। समुद्र देव ने उसे समुद्र, पाताल और नागलोक से कर वसूलने की जिम्मेदारी सौंपी थी।  

असुरों के बहकावे में आकर शंख भगवान विष्णु के पास कर वसूलने पहुंचा। भगवान विष्णु ने शंख को समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसने उनकी बात को अनसुना कर दिया और कर मांगने की जिद्द पर अड़ा रहा। 

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कर को लेकर चल रही बहस के दौरान शंख ने माता लक्ष्मी के बारे में अनुचित वचन कहे। उसने भगवान विष्णु से कहा, "यदि तुम कर नहीं दे सकते, तो यह सुंदर स्त्री (देवी लक्ष्मी) मुझे दे दो।" शंख के इस अपमानजनक वचन से क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपनी गदा से उसका वध कर दिया। 

जब समुद्र देव को यह जानकारी मिली कि भगवान विष्णु ने उनके पुत्र शंख का वध कर दिया है, तो वे अत्यंत क्रोधित होकर क्षीर सागर पहुंचे। उन्होंने भगवान विष्णु की पूरी बात सुने बिना ही उन्हें श्राप दे दिया। 

समुद्र देव ने कहा, "मेरे पुत्र का वध देवी लक्ष्मी के कारण हुआ है, इसलिए अब देवी लक्ष्मी समुद्र में समा जाएंगी।" उनके इस श्राप के कारण माता लक्ष्मी समुद्र में विलीन हो गईं। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करने के लिए भगवान शिव के आदेश पर भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन का आयोजन किया। इस मंथन के दौरान अनेक मूल्यवान रत्नों के साथ-साथ देवी लक्ष्मी का भी पुनः प्राकट्य हुआ। इसके बाद भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी के साथ विवाह संपन्न किया। 

महाकुंभ का संबंध भगवान विष्णु को मिले श्राप से जोड़ा जाता है। इसी श्राप के कारण समुद्र मंथन हुआ, जिससे अमृत प्रकट हुआ।  

अमृत के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ, और इसी संघर्ष के दौरान अमृत कलश से गिरने वाली बूंदें जिन स्थानों पर पड़ीं, वे स्थान आज कुंभ के आयोजन के लिए प्रसिद्ध हैं। इस तरह भगवान विष्णु को मिला यह श्राप महाकुंभ के आयोजन का एक प्रमुख कारण माना जाता है। 

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