महाकुंभ में दंडी स्वामी कौन होते हैं? आज के लेख में जानेंगे दंडी स्वामी कौन होते हैं जिन्हे भगवान नारायण का अवतार माना जाता है। 

निरामिष भोजन, निरपेक्षता, अक्रोध, अध्यात्म में रुचि, आत्मसंयम, गृहत्याग, सिद्धि की प्राप्ति, असहायता, अग्नि से दूरी, परिभ्रमण, मुनि भाव और मृत्यु से निर्भय रहना, सुख-दुःख में समानता जैसे नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति 'दंडी संन्यासी' कहलाते हैं।  

स्वामी अखंडानंद का कहना है कि दंडी स्वामी नारायण के अवतार माने जाते हैं। 

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इसलिए वे भिक्षा मांगने के बजाय केवल बुलावे पर ही भोजन ग्रहण करते हैं। 

स्वामी अधोक्षजानंद देव तीर्थ के अनुसार, दंडी स्वामी के दर्शन मात्र से नारायण के दर्शन के समान पुण्य मिलता है।  

कुंभ में दंडी स्वामियों की सेवा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, और उनकी सेवा के बिना कुंभ को अधूरा माना जाता है। साथ ही, दंडी स्वामी कभी स्वयं भोजन नहीं बनाते। 

ऐसा कहा जाता है कि दंडी स्वामियों को धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि स्वयं लक्ष्मी माता हमेशा उनके साथ रहती हैं। 

हालांकि, दंडी स्वामियों का जीवन बेहद कठिन होता है, क्योंकि वे स्वयं दंड धारण करते हैं।  

यह भी मान्यता है कि राम राज्य के दौरान किसी को भी दंड नहीं दिया जाता था, केवल दंडी स्वामी ही दंड धारण करते थे। तभी से उन्हें यह वरदान प्राप्त हुआ कि वे नारायण की तरह पूजित होंगे। 

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