महिला नागा साधुओं का जीवन पुरुष नागा साधुओं से भिन्न होता है।
ये सांसारिक जीवन छोड़कर पूर्णतः आध्यात्मिक जीवन अपनाती हैं और गृहस्थ जीवन का त्याग कर देती हैं।
इनका दिन पूजा-पाठ से आरंभ होता है और उसी के साथ समाप्त होता है। महिला नागा साधु शिव, पार्वती, और माता काली की भक्त होती हैं।
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पूजा-पाठ उनके जीवन का मुख्य आधार है और उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
उनके जीवन में कठिनाईयों के बावजूद, उनकी आस्था और समर्पण अटूट रहता है।
महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का मार्ग अत्यंत कठिन है। इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है।
गुरु को अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना अनिवार्य है। महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी करना पड़ता है।
इस प्रक्रिया में महिलाओं को कई कठिन परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है।
नागा साधु बनने के लिए आवश्यक तपस्या और अनुशासन अत्यधिक होते हैं। यह मार्ग महिलाओं के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है।
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