प्रयागराज में 13 जनवरी से लगने वाले महाकुंभ में जंगम साधुओं का शिविर भी नजर आने वाला है। 

ये साधु गेरुआ लूंगी-कुर्ते, दशनामी पगड़ी, तांबे-पीतल के गुलदान में मोरपंख का गुच्छा और हाथ में विशेष आकार की घंटी, जिसे टिल्ली कहा जाता है, के साथ पहचाने जाते हैं। 

जंगम साधु अपनी विशिष्ट पहचान के कारण सबसे अलग नजर आते हैं। लेकिन यह सवाल उठता है कि ये साधु हैं कौन  ?

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ये साधु कठिन साधना में लीन रहते हैं और समाज में अपनी सेवा और उपदेश के माध्यम से योगदान देते हैं। उनकी जीविका समाज के सहयोग और दान पर निर्भर करती है। 

आइए जानते हैं कि जंगम साधुओं की उत्पत्ति कैसे हुई। कथाओं के अनुसार, ये साधु भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न हुए थे, इसलिए इन्हें जंगम साधु कहा जाता है। 

मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती की शादी के समय भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने दक्षिणा लेने से इंकार कर दिया था। 

तब भगवान शिव ने अपनी जांघ से जंगम साधुओं को उत्पन्न किया, जिन्होंने दक्षिणा स्वीकार की और विवाह संपन्न कराया। 

ये साधु विवाह के गीत भी गाते हैं और उनकी परंपरा आज भी चल रही है। 

जंगम साधुओं की उत्पत्ति की यह कहानी धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। 

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