महाकुंभ मेले का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा इस वर्ष 12 फरवरी, बुधवार को पड़ रहा है। इस दिन कल्पवास का संकल्प पूर्ण होता है, और सभी कल्पवासी कन्या भोज का आयोजन करते हैं।  

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघी पूर्णिमा की रात देवी-देवता, किन्नर, गंधर्व, यक्ष और तीर्थ सभी अपने लोकों को लौट जाते हैं।  

इसलिए इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है। साथ ही, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। 

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महाकुंभ मेले का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा इस वर्ष 12 फरवरी, बुधवार को मनाया जाएगा।  

माघी पूर्णिमा पर देवी-देवता होंगे विदा  माघी पूर्णिमा के दिन रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन करने की परंपरा होती है।

इस अवसर पर देवताओं से प्रार्थना की जाती है कि यदि कोई भूल या त्रुटि हुई हो, तो उसे क्षमा करें।  

इस दिन सभी देवी-देवता, किन्नर, गंधर्व, यक्ष और तीर्थ विदा होते हैं, इसलिए रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है।  

अचला सप्तमी पर ऋषि विदा होते हैं, जबकि माघी पूर्णिमा के दिन देवी-देवता, किन्नर और गंधर्व अपनी दिव्य लोकों की ओर प्रस्थान करते हैं। 

कल्पवास के समापन पर हर कल्पवासी कन्या भोज का आयोजन करता है। इससे पहले, वे गंगा जी में अपनी सामर्थ्य के अनुसार भोग बनाकर अर्पित करते हैं। तत्पश्चात, गंगा आरती और वंदन कर मां गंगा से क्षमा याचना करते हैं। अंत में, कन्याओं को भोजन कराकर कल्पवास की पूर्णता की जाती है। 

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