धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघी पूर्णिमा के दिन स्नान करने से व्यक्ति नर्क गमन से मुक्त हो जाता है और इस पुण्य के प्रभाव से भवसागर को पार कर विष्णु धाम में स्थान प्राप्त करता है। 

तीर्थ स्नानार्थी को पहले "त्रिवेण्ये नमः" कहकर पुष्पांजलि अर्पित करनी चाहिए, फिर ओमकार का उच्चारण करते हुए जल को स्पर्श करना चाहिए। 

माघ पूर्णिमा की सुबह स्नान करके भगवान विष्णु का पूजन, पितरों का श्राद्ध कर्म, और असमर्थों को भोजन और वस्त्र दान करें। 

ब्राह्मणों को तिल, वस्त्र, कंबल, गुड़, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्न, स्वर्ण, रजत आदि का दान करें। 

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पूरे दिन व्रत पालन कर ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद कथा-कीर्तन करें। 

माघ पूर्णिमा को गंगा स्नान के लिए फलदायिनी कहा गया है। ब्राह्मणों को भोजन कराना व्रत का मुख्य महात्म्य है। 

माघ पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है और इस दिन तिल से स्नान करने से पापों का शमन होता है। 

पितरों के तर्पण के लिए माघी पूर्णिमा का दिन विशेष माना गया है। इस दिन काले तिल से हवन और तर्पण करने से पितरों की अतृप्त आत्मा को शांति मिलती है। 

तिल और कंबल का दान करने से मृत्युलोक से मुक्ति प्राप्त होती है। माघी पूर्णिमा का व्रत करने से सुख, सौभाग्य, धन-संतान और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। 

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