आपने होलाष्टक का नाम तो जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे अशुभ क्यों माना जाता है? होलाष्टक कब से शुरू होता है, और इस दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं? 

होलाष्टक के दौरान ग्रहों की नकारात्मकता बढ़ जाती है, जिससे आठ दिनों तक वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बना रहता है।  

ज्योतिष के अनुसार, इस समय ग्रह-नक्षत्र कमजोर हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। हालांकि, होलाष्टक में पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। इस दौरान मौसम में भी बदलाव देखा जाता है, इसलिए दिनचर्या को अनुशासित और संतुलित रखना चाहिए। 

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होलाष्टक कब से शुरू हो रहा है?  ज्योतिषीय गणना के अनुसार, इस वर्ष होलाष्टक 2025 की शुरुआत 7 मार्च, गुरुवार को प्रातः 10:51 बजे से होगी और इसका समापन 14 मार्च को दोपहर 12:24 बजे पर होगा। होलाष्टक की अवधि 7 मार्च से 14 मार्च तक रहेगी 

होलाष्टक को अशुभ क्यों माना जाता है?  ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, होलाष्टक के दौरान आठ ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं, जिससे इस समय को अशुभ माना जाता है। इस अवधि में विभिन्न तिथियों पर अलग-अलग ग्रहों की उग्र स्थिति देखी जाती है— 

अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी तिथि को सूर्य, दशमी तिथि पर शनि, एकादशी तिथि को शुक्र, द्वादशी तिथि पर गुरु, त्रयोदशी तिथि को बुध, चतुर्दशी तिथि पर मंगल, – और पूर्णिमा तिथि के दिन राहु उग्र स्थिति में रहते हैं

इन ग्रहों की उग्रता का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के दौरान किए गए शुभ कार्यों पर इन ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ता है, 

होलाष्टक के आठ दिनों के दौरान विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए। इस अवधि में भूमि, भवन और वाहन की खरीदारी को भी अशुभ माना जाता है। साथ ही, नवविवाहिताओं को इन दिनों में अपने मायके में रहने की सलाह दी जाती है। 

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान पूजा-पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस समय मौसम में तेजी से बदलाव होता है, इसलिए स्वस्थ और अनुशासित दिनचर्या अपनाने की सलाह दी जाती है। इस दौरान स्वच्छता और संतुलित खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस अवधि में भगवान विष्णु की आराधना करना शुभ माना जाता है। हालांकि, इस दौरान कोई मांगलिक कार्य नहीं किए जाते, लेकिन अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना की जा सकती है। 

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