क्या मृत्यु के बाद भी मिल सकता है देवताओं जैसा सम्मान? गरुड़ पुराण में ऐसे पुण्य कर्मों का उल्लेख है, जिनके चलते आत्मा को यमलोक में भी विशेष आदर-सत्कार मिलता है। 

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ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों को विशेष सम्मान जो जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वे मृत्यु के बाद सिद्ध द्वार से यमलोक में प्रवेश करते हैं और देवताओं जैसी प्रतिष्ठा पाते हैं। 

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तपस्वी और सन्यासी का ऊँचा स्थान तपस्या और त्याग से जीवन जीने वाले संतों और सन्यासियों को गंधर्वों और देवगणों द्वारा स्वागत मिलता है। 

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ज्ञान और वैराग्य के मार्ग पर चलने वालों की महिमा जो सांसारिक लालच छोड़कर ज्ञान और वैराग्य को अपनाते हैं, उन्हें यमलोक में विशेष दर्जा प्राप्त होता है। 

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सोने-पत्थर में भेद न करने वाले महान आत्मा जो व्यक्ति धन और साधारण वस्तुओं में अंतर नहीं करते, वे मोहमुक्त माने जाते हैं और उन्हें उच्च आत्माओं में गिना जाता है। 

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व्रत और भक्ति में लीन साधक को यश मिलता है जो शिव-विष्णु के व्रत रखते हैं और हर कर्म भगवान को अर्पित करते हैं, उन्हें मोक्षदायी सम्मान प्राप्त होता है। 

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पितृ ऋण से मुक्त आत्माओं को सम्मानित प्रवेश जो पितरों का श्राद्ध करते हैं और उन पर कोई ऋण नहीं रखते, उन्हें यमलोक में पवित्र द्वार से प्रवेश मिलता है। 

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बुरी संगति से दूर रहना बनाता है श्रेष्ठ आत्मा जो लोग बुरे लोगों की संगति से खुद को बचाते हैं, वे पुण्य आत्माओं में गिने जाते हैं और उन्हें विशेष सत्कार मिलता है। 

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मलोक में देवताओं जैसा स्वागत क्यों होता है? गरुड़ पुराण के अनुसार, इन पुण्य कर्मों का फल मृत्यु के बाद मिलता है—जहां गंधर्व, अप्सराएं और चित्रगुप्त स्वयं स्वागत करते हैं। 

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