चार दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व कल से नहाय खाय के साथ शुरू होने जा रहा है। इस महापर्व का सबसे खास पहलू है कि इसमें उगते और ढलते सूर्य दोनों को अर्घ्य दिया जाता है।
पुरुषों के साथ इस पर्व में महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं और सूर्य उपासना करती हैं।
इस पर्व में बांस से बने दउरा या डाला का खास महत्व है, जिसे छठ घर से लेकर छठ घाट तक ले जाया जाता है। प्रथा के अनुसार, दउरा ज्यादातर पुरुष ही उठाते हैं, लेकिन कई लोगों के मन में यह सवाल होता है कि क्या महिलाएं भी दउरा ले जा सकती हैं।
क्या महिलाएं भी उठा सकती हैं दउरा?
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इस महापर्व में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की भागीदारी होती है, लेकिन परंपरागत रूप से पुरुष ही डाला या दउरा उठाते हैं।
फिर भी इस पर्व में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है, इसलिए महिलाएं भी शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखते हुए दउरा छठ घाट तक ले जा सकती हैं।
इस पर्व में पवित्रता का विशेष ध्यान रखना अनिवार्य होता है।
इन महिलाओं को दउरा उठाने से बचना चाहिए
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि कुछ विशेष महिलाओं को दउरा नहीं उठाना चाहिए। जो महिलाएं मासिक धर्म में हैं, उन्हें इस पवित्र कार्य से दूर रहना चाहिए।
साथ ही, कोई भी बीमार महिला, बुजुर्ग महिला या विधवा महिला को भी दउरा नहीं उठाना चाहिए।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा करना अशुभ फलदायी हो सकता है और इससे पूजा का पवित्र उद्देश्य प्रभावित हो सकता है।
छठ पूजा में जितना ध्यान व्रत, नियम और शुद्धता पर दिया जाता है, उतना ही ध्यान सभी सदस्यों की भागीदारी पर भी दिया जाता है।