By Neha Pandey
जीवन में सुख और दुःख क्षणिक होते हैं, जैसे शीत और उष्णता। श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक 2.14 में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धैर्य और कर्तव्य के महत्व को समझाया।
श्लोक 2.14 "मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः | अगामापायिनोSनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत || १४ || "
हे कुन्तीपुत्र! सुख और दुःख का क्षणिक उदय और उनका अन्तर्धान होना सर्दी और गर्मी की ऋतुओं के आने-जाने के समान है। उन्हें अविचल भाव से सहन करना सीखें।
श्लोक 2.14
सुख और दुःख, जीवन के अटल सत्य हैं, जो समय के साथ बदलते रहते हैं। इन अनुभवों से हमें विचलित नहीं होना चाहिए।
धैर्य और सहनशीलता जीवन में धैर्य का महत्व: सुख और दुःख के अनुभवों को धैर्यपूर्वक सहन करना चाहिए। यही जीवन की सच्ची परीक्षा है।
कर्तव्य का पालन सुख-दुःख के बावजूद, हमें अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए। कर्तव्य-निर्वाह ही मनुष्य का परम धर्म है।
अर्जुन को कौन्तेय और भारत कहकर संबोधित किया गया, जो उसकी मातृकुल और पितृकुल की महान विरासत को दर्शाता है। इस विरासत के कारण अर्जुन पर कर्तव्यों का निर्वाह करने की जिम्मेदारी है।
जीवन के सुख और दुःख केवल माया के भ्रम हैं। सच्ची मुक्ति केवल ज्ञान और भक्ति से ही प्राप्त की जा सकती है।
श्री कृष्ण का संदेश है कि हमें जीवन के हर अनुभव को धैर्य और संयम से सहन करना चाहिए और अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए। यही जीवन का सच्चा अर्थ है।
निष्कर्ष श्लोक 2.14 हमें सिखाता है कि सुख-दुःख क्षणिक हैं, और धैर्य से ही हम जीवन में स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर चलकर ही हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
जीवन में स्थिरता की आवश्यकता......