By Neha Pandey

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse-Shloka 13

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 13

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श्रीकृष्ण का संदेश: जीवन का परिवर्तन और आत्मा का अमरत्व गीता श्लोक 2.13 के माध्यम से जीवन के गहरे रहस्यों की खोज।

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श्लोक 2.13 "देहिनोSस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ||

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श्रीकृष्ण बताते हैं कि आत्मा बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक शरीर में रहते हुए भी अमर रहती है, और मृत्यु के बाद नए शरीर में प्रवेश करती है।

भावार्थ

श्लोक 2.13

आत्मा अमर है शरीर बदलता है, लेकिन आत्मा अपरिवर्तनीय और शाश्वत है। यह जीवन के हर परिवर्तन से परे है।

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परिवर्तन का सत्य जैसे शरीर बालक से वृद्ध होता है, वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा नया शरीर धारण करती है। यह चक्र अनिवार्य है।

धीर पुरुष की पहचान धीर कौन है? जो व्यक्ति इस सत्य को समझता है और जीवन के परिवर्तन से मोह नहीं करता, वह धीर कहलाता है।

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कर्म का प्रभाव कर्म और पुनर्जन्म आत्मा के शरीर बदलने पर कर्मों के अनुसार सुख और दुःख का अनुभव होता है। कर्म ही अगले जीवन का आधार है।

शोक मत करो भीष्म और द्रोण जैसे महापुरुषों के लिए शोक का कोई कारण नहीं है, क्योंकि वे अपने कर्मों के अनुसार नए शरीर में प्रवेश करेंगे।

शोक का कोई कारण नहीं

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आत्मा और परमात्मा का संबंध आत्मा और परमात्मा आत्मा और परमात्मा का संबंध शाश्वत है। परमात्मा अपरिवर्तनीय है, और आत्मा उसका अंश होते हुए भी स्वतंत्र है।

निष्कर्ष आत्मा शाश्वत है, शरीर मात्र परिवर्तनशील माध्यम है। धीर व्यक्ति जीवन के इन परिवर्तनों से मुक्त रहते हैं।

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श्लोक 2.14

जीवन में सुख और दुःख..........