भगवद्गीता के अध्याय 2, श्लोक 23(bhagwat gita chapter 2 shloka 23) में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मा के अमर और अजर-अमर स्वरूप के बारे में बताया है।

इस श्लोक में आत्मा के उस अद्वितीय गुण की व्याख्या की गई है जिसे कोई भौतिक तत्व नष्ट नहीं कर सकता। यह श्लोक जीवन के गहरे आध्यात्मिक सत्य को उजागर करता है।

श्लोक: नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः || २३ ||

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भावार्थ

यह श्लोक भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का हिस्सा है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन, मृत्यु और आत्मा के वास्तविक स्वरूप के बारे में गहन ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। श्लोक 2.23 आत्मा की अविनाशी प्रकृति पर केंद्रित है, जिसे न तो किसी शस्त्र से काटा जा सकता है, न अग्नि से जलाया जा सकता है, न जल से भिगोया जा सकता है और न ही वायु से सुखाया जा सकता है।

इसका अर्थ यह है कि आत्मा भौतिक जगत की किसी भी शक्ति के अधीन नहीं है और यह सदा के लिए अजर-अमर रहती है।

श्रीकृष्ण के अनुसार, आत्मा को न तो काटा जा सकता है, न जलाया जा सकता है, न भिगोया जा सकता है और न सुखाया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि आत्मा सभी प्रकार की भौतिक और प्राकृतिक शक्तियों से परे है।

शास्त्रों में यह भी उल्लेख किया गया है कि आत्मा को शस्त्र, अग्नि, जल और वायु जैसी प्राकृतिक शक्तियों से नष्ट नहीं किया जा सकता। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि आत्मा अजर-अमर है और इसे किसी भी बाहरी शक्ति से हानि नहीं पहुँचाई जा सकती।

यदि हम आत्मा की अवधारणा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो हम पाएंगे कि यह भौतिक विज्ञान से परे है। आधुनिक विज्ञान केवल भौतिक वस्तुओं और प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है, लेकिन आत्मा एक आध्यात्मिक तत्व है जो विज्ञान के नियमों से परे है।

मायावाद के सिद्धांत के अनुसार, आत्मा और ब्रह्म (परमात्मा) एक ही हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं है। परंतु इस श्लोक के अनुसार, आत्मा और परमात्मा अलग-अलग अस्तित्व रखते हैं। जीवात्मा ब्रह्म से उत्पन्न हुई है, परंतु वह अपनी स्वयं की पहचान और अस्तित्व रखती है। जीवात्मा का ब्रह्म से विलग होना और माया द्वारा आवृत्त होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो उसे संसार में विभिन्न जन्म-मरण के चक्र से बाँधती है।

Bhagavad Gita: जानिए आत्मा के बारे में भगवान श्री कृष्ण ने गीता में क्या कहा है