भगवद गीता का श्लोक 2.25(Bhagwat Geeta Chapter 2 Shloka 25) आत्मा के शाश्वत और अद्वितीय स्वरूप का विवरण प्रस्तुत करता है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताया है।

अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में अपने प्रियजनों की मृत्यु का शोक हो रहा था, और वह युद्ध करने में संकोच कर रहा था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे आत्मा के अदृश्य, अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय स्वरूप की शिक्षा दी, जिससे वह शोक और मोह से मुक्त हो सके।

श्लोक 2.25  अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते | तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि || २५ ||

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भावार्थ

यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय और अविकार्य कहा जाता है। इसलिए, इस सत्य को जानकर तुम्हें शरीर के नाश पर शोक नहीं करना चाहिए।

आत्मा की अद्वितीय विशेषताएँ 1. अव्यक्त (अदृश्य) आत्मा अदृश्य है। इसे किसी भी भौतिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। यह इतनी सूक्ष्म और नितांत अदृश्य है कि कोई भी वैज्ञानिक उपकरण या प्रयोग इसे नहीं पहचान सकते। आत्मा का स्वरूप ऐसा है जिसे हमारी इंद्रियाँ भी ग्रहण नहीं कर सकतीं।

2. अचिन्त्य (अकल्पनीय) आत्मा अचिन्त्य है, जिसका अर्थ है कि इसे मानव मस्तिष्क से पूरी तरह से समझना संभव नहीं है। आत्मा का अस्तित्व और स्वरूप हमारे व्यावहारिक ज्ञान से परे है। हम कई चीजों को केवल मान्यताओं या प्राचीन ग्रंथों के आधार पर मानते हैं, जिनमें आत्मा का अस्तित्व भी शामिल है।

3. अविकार्य (अपरिवर्तनीय) आत्मा अपरिवर्तनीय है। इसका मतलब है कि आत्मा में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता, चाहे शरीर का नाश हो जाए या नई देह धारण की जाए। शरीर नाशवान है, लेकिन आत्मा शाश्वत और अचल है। इसे किसी प्रकार का परिवर्तन प्रभावित नहीं कर सकता। आत्मा न तो जन्म लेती है, न ही मरती है।

आत्मा का शाश्वत और अविनाशी स्वरूप श्रीकृष्ण के इस उपदेश से हमें आत्मा के अनंत और स्थायी स्वरूप को समझने का एक मार्ग मिलता है। आत्मा न तो भौतिक पदार्थों से प्रभावित होती है और न ही यह किसी भौतिक नियम के अधीन होती है।

आत्मा को समझने का उपाय श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से हमें यह भी बताते हैं कि आत्मा को भौतिक साधनों से नहीं समझा जा सकता। आत्मा का अस्तित्व हमें केवल वेदों और आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से ही ज्ञात हो सकता है। आत्मा को लेकर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह सत्य वेदों में प्रमाणित है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति को अपने पिता के अस्तित्व का प्रमाण उसकी माँ देती है, वैसे ही आत्मा का सत्य वेदों द्वारा प्रमाणित किया गया है।

क्यों प्रिय हैं भगवान श्री कृष्ण को मोरपंख