भगवद गीता का श्लोक 2.24(Bhagavad Gita Shloka 2.24) आत्मा की शाश्वत और अविनाशी प्रकृति को उजागर करता है।
यह श्लोक हमें बताता है कि आत्मा अद्वितीय है और इसे न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही किसी भी प्रकार से बदला जा सकता है। यह आत्मा के शाश्वत अस्तित्व की गहरी समझ प्रदान करता है। आइए, इस श्लोक के अर्थ और तात्पर्य को गहराई से जानें।
भगवद गीता के इस श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा का स्वरूप नितांत अविनाशी है। इसे किसी भी भौतिक शक्ति से नष्ट नहीं किया जा सकता। चाहे वह आग हो, पानी हो, हवा हो, या कोई अन्य प्राकृतिक तत्व—आत्मा इन सभी से अप्रभावित रहती है। आत्मा के ये गुण हमें यह सिखाते हैं कि यह शरीर नष्ट हो सकता है, लेकिन आत्मा शाश्वत और अजर-अमर है।
श्लोक 2.24 आत्मा के महत्वपूर्ण गुणों को स्पष्ट रूप से प्रकट करता है। आत्मा को न तो तोड़ा जा सकता है, न जलाया जा सकता है, न गीला किया जा सकता है और न ही सुखाया जा सकता है। इस श्लोक के माध्यम से आत्मा की अमरता और शाश्वतता को समझाया गया है।
इस श्लोक में आत्मा के निम्नलिखित गुणों पर प्रकाश डाला गया है:अविनाशी: आत्मा को किसी भी प्रकार से नष्ट नहीं किया जा सकता। चाहे वह शस्त्र हो या आग, कोई भी भौतिक शक्ति आत्मा को क्षति नहीं पहुँचा सकती।
अपरिवर्तनीय: आत्मा में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। यह सदैव एक जैसा रहता है। यह एक अणु के रूप में है, जो कभी भी अपनी प्रकृति नहीं बदलता। चाहे शरीर किसी भी अवस्था में हो, आत्मा अपनी मौलिकता को बनाए रखती है।
सर्वव्यापी: आत्मा हर जगह विद्यमान है। यह सभी जीवों के अंदर निवास करती है और यह ब्रह्मांड के प्रत्येक कोने में व्याप्त है। जल, थल, वायु, अग्नि या कोई भी तत्व आत्मा की उपस्थिति से अछूता नहीं है।
स्थिर और स्थायी: आत्मा की स्थिति स्थिर है। इसे किसी भी परिस्थिति से हिलाया या बदला नहीं जा सकता। यह न केवल अविचलित है, बल्कि सनातन है। इसका कोई अंत नहीं है और यह हमेशा अपने स्वरूप में बनी रहती है।
Bhagavad Gita: जानिए भगवान श्री कृष्ण के अनुसार आत्मा की विशेषायें