भगवद्गीता, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक, हमें जीवन के गहरे रहस्यों को समझने का मार्ग प्रदान करती है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा, धर्म, कर्म और जीवन-मृत्यु के चक्र के विषय में दिव्य ज्ञान देते हैं।
भगवद्गीता के श्लोक 2.20(Bhagwat Gita Chapter 2 Shloka 20) में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा की शाश्वतता और अमरता का उल्लेख करते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह अमर, शाश्वत और पुरातन है। शरीर नाशवान है, परंतु आत्मा इन सब से परे है।
श्लोक 2.20:"न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
अजो नित्यः शाश्र्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ||"
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भावार्थ
इस श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा के लिए न कोई जन्म है और न ही कोई मृत्यु। आत्मा न कभी उत्पन्न हुई है, न हो रही है, और न भविष्य में होगी। यह अजन्मा, शाश्वत, अनादि और पुरातन है। शरीर के नाश होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती। शरीर मात्र आत्मा का वस्त्र है, जो समय आने पर बदल जाता है, परंतु आत्मा स्थिर रहती है।
श्लोक का मुख्य संदेश यह है कि आत्मा को कोई शक्ति नष्ट नहीं कर सकती। मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अजर-अमर है। आत्मा को मारने या समाप्त करने का कोई साधन नहीं है क्योंकि यह तत्व नित्य और अटल है। इसे न आग जलाती है, न पानी भिगोता है और न हवा सुखाती है।
भगवद्गीता के श्लोक 2.20(Bhagwat Geeta Chapter 2 Shloka 20) में आत्मा की जो अमरता बताई गई है, वह हमें इस बात का बोध कराती है कि आत्मा किसी भी प्रकार के शारीरिक परिवर्तन से प्रभावित नहीं होती। शरीर नाशवान है और इसमें जीवन चक्र के कई चरण होते हैं—जन्म, बाल्यकाल, युवावस्था, वृद्धावस्था और अंत में मृत्यु। यह शरीर का स्वाभाविक चक्र है, परंतु आत्मा इस चक्र से मुक्त है।
आत्मा का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण लक्षण है चेतना। चेतना ही आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है। जैसे सूर्य का प्रकाश हमें सूर्य के अस्तित्व का बोध कराता है, वैसे ही चेतना हमें आत्मा की उपस्थिति का संकेत देती है।
आत्मा और चेतना का गहरा संबंध यह दर्शाता है कि आत्मा के बिना शरीर जीवित नहीं रह सकता। चेतना ही आत्मा का प्रतीक है, और इसके माध्यम से हम अपने आस-पास की दुनिया से जुड़ते हैं।
भगवद्गीता हमें सिखाती है कि जब आत्मा अपने शाश्वत स्वरूप को पहचान लेती है, तो वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है। यह आत्मा का परम लक्ष्य होता है—मोक्ष प्राप्त करना और भौतिक संसार के बंधनों से मुक्त होना।
Bhagavad Gita: आत्मा कभी नष्ट नहीं होती और इसे मारा नहीं जा सकता है