भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन और मृत्यु के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया है। श्लोक 2.19(Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 19) में, श्रीकृष्ण आत्मा की अमरता और शाश्वतता का महत्व समझाते हैं।

यह श्लोक न केवल युद्ध के संदर्भ में, बल्कि जीवन के हर पहलू में आत्मा के अनंत स्वरूप को उजागर करता है। इस श्लोक में दिए गए गहरे संदेश को समझना और आत्मसात करना आज भी हमारे जीवन के लिए उतना ही प्रासंगिक है जितना महाभारत के समय था।

श्लोक 2.19: "य एनं वेत्ति हन्तारं यश्र्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥"

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भावार्थ

जो व्यक्ति आत्मा को मारने वाला समझता है, और जो इसे मरा हुआ मानता है, वे दोनों अज्ञान में हैं। आत्मा न मारता है, न मारा जाता है। आत्मा शाश्वत, अविनाशी और अजर-अमर है।

गीता के इस श्लोक का मूल संदेश यह है कि आत्मा और शरीर दो अलग-अलग तत्व हैं। शरीर नश्वर है, जो जन्म लेता है और समय आने पर नष्ट हो जाता है। लेकिन आत्मा अजर-अमर है।

आत्मा किसी प्रकार के भौतिक तत्व से प्रभावित नहीं होती। इसे न तो कोई हथियार मार सकता है, न ही इसे जलाया, गीला, सुखाया या काटा जा सकता है। यह शाश्वत और अविनाशी है।

भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में अर्जुन को समझाते हैं कि जो व्यक्ति यह सोचता है कि वह किसी की आत्मा को मार सकता है, वह अज्ञानी है।

इसी प्रकार, जो यह मानता है कि आत्मा मारी जा सकती है, वह भी अज्ञान में है। आत्मा किसी भी परिस्थिति में मारी नहीं जा सकती, यह शरीर का विनाश ही होता है, आत्मा का नहीं।

गीता के श्लोक 2.19 में भगवान श्रीकृष्ण आत्मा के अमर और शाश्वत स्वरूप को समझाते हैं। आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह नष्ट नहीं हो सकती, इसलिए इसे मारने का भी कोई प्रश्न नहीं उठता। आत्मा किसी भी प्रकार के भौतिक तत्वों से अछूती रहती है।

Bhagavad Gita: गीता में भगवान कृष्ण ने दिया है जीवन-मृत्यु के चक्र का ज्ञान