भगवद्गीता भारतीय दर्शन का वह अनमोल ग्रंथ है, जिसमें जीवन के गूढ़तम प्रश्नों के उत्तर बड़ी सरलता से प्रस्तुत किए गए हैं। श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में यह ग्रंथ मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है। इसका हर श्लोक जीवन को समझने, उसे आत्मसात करने और भौतिक जगत से परे जाकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा देता है।

इसी संदर्भ में श्लोक 2.22 (Bhagwat Geeta Chapter 2 Shloka 22) शरीर और आत्मा के रिश्ते को स्पष्ट करता है, जिसमें आत्मा की अमरता और शरीर की परिवर्तनशीलता पर जोर दिया गया है। इस श्लोक का महत्व यह है कि यह हमें मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा और उसके अमरत्व को समझने में सहायता करता है।

श्लोक का वर्णन श्लोक 2.22 इस प्रकार है: वांसासि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यान्यानी संयाति नवानि देही।। 2.22।।

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भावार्थ

इस श्लोक का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार मनुष्य पुराने और फटे हुए वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने, नष्ट हो चुके शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। यह परिवर्तन आत्मा के अमरत्व का संकेत है, जबकि शरीर नश्वर और क्षणभंगुर है।

यह श्लोक हमें आत्मा और शरीर के बीच का संबंध समझने में मदद करता है, जहाँ शरीर सिर्फ आत्मा का बाहरी आवरण है, जिसे आत्मा समय-समय पर त्यागकर नए शरीर में प्रवेश करती है।

भगवद्गीता के इस श्लोक में आत्मा की अमरता और शरीर के नाशवान होने का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करते हैं, उसी प्रकार आत्मा भी एक शरीर को त्यागकर नए शरीर में प्रवेश करती है।

यह श्लोक इस सच्चाई को प्रकट करता है कि मृत्यु अंत नहीं है, बल्कि आत्मा की यात्रा का एक नया चरण है। आत्मा जन्म-मृत्यु के चक्र में बंधी होती है, और यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।

मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। यह आत्मा के नित्य और अमर होने का प्रमाण है। जिस प्रकार हम एक पुराने वस्त्र को छोड़कर नया वस्त्र धारण करते हैं, ठीक उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर प्राप्त करती है।

आधुनिक जीवन में भी, जब हम मृत्यु को शोक और दु:ख का कारण मानते हैं, तो इस श्लोक का संदेश हमें याद दिलाता है कि आत्मा अमर है, और यह केवल अपने पुराने आवरण से मुक्त होकर नए आवरण में प्रवेश करती है। इसलिए मृत्यु को दु:ख का विषय नहीं बनाना चाहिए, बल्कि इसे आत्मा की नयी यात्रा का प्रारंभ मानना चाहिए।

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