इस श्लोक के भावार्थ में भगवान अर्जुन को उसके धर्म की महत्ता का बोध कराते हैं। अर्जुन एक क्षत्रिय है, और उसका कर्तव्य है कि वह अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़े। युद्ध करना उसके स्वधर्म का हिस्सा है, जिसे त्यागना उसे पाप की ओर ले जाएगा। अर्जुन के पास महान योद्धा बनने का गौरव है, लेकिन अगर वह इस युद्ध से भागता है, तो उसकी कीर्ति और यश दोनों समाप्त हो जाएंगे।