भगवद गीता के श्लोक 2.33(Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 33) में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसके कर्तव्य के प्रति जागरूक किया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया कि उसका धर्म एक योद्धा का है, और इस धर्म का पालन करना उसकी जिम्मेदारी है।

इस श्लोक के माध्यम से श्रीकृष्ण ने केवल अर्जुन को ही नहीं, बल्कि समस्त मानव जाति को यह सिखाया है कि जीवन में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन अत्यंत आवश्यक है।

श्लोक: अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि | ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि || ३३ || अथ – अतः; चेत् – यदि; त्वम् – तुम; इमम् – इस; धर्म्यम् – धर्म रूपी; संग्रामम् – युद्ध को; न – नहीं; करिष्यसि – करोगे; ततः – तब; स्व-धर्मम् –

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भावार्थ:

इस श्लोक के भावार्थ में भगवान अर्जुन को उसके धर्म की महत्ता का बोध कराते हैं। अर्जुन एक क्षत्रिय है, और उसका कर्तव्य है कि वह अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़े। युद्ध करना उसके स्वधर्म का हिस्सा है, जिसे त्यागना उसे पाप की ओर ले जाएगा। अर्जुन के पास महान योद्धा बनने का गौरव है, लेकिन अगर वह इस युद्ध से भागता है, तो उसकी कीर्ति और यश दोनों समाप्त हो जाएंगे।

अर्जुन अपने समय का एक महान योद्धा था, जिसने कई युद्धों में अपनी वीरता दिखाई थी। शिवजी से युद्ध कर पाशुपतास्त्र प्राप्त करना, गुरु द्रोणाचार्य से आशीर्वाद प्राप्त करना, और अन्य देवताओं से अनेक युद्ध करना - अर्जुन की वीरता का प्रमाण था।

अर्जुन को उसकी वीरता के कारण सम्मान मिला था, लेकिन यदि वह इस महायुद्ध से पीछे हट जाता है, तो न केवल उसका सम्मान समाप्त हो जाएगा, बल्कि वह अपने धर्म का उल्लंघन करने का दोषी भी बन जाएगा।

अर्जुन के लिए यह एक बड़ा संकट था - यदि वह युद्ध से पीछे हटता है, तो वह अपने धर्म का अपमान करेगा और उसका यश भी नष्ट हो जाएगा।

इसी कारण, भगवान श्रीकृष्ण ने उसे यह समझाने का प्रयास किया कि युद्ध न करने का परिणाम उसके लिए पापपूर्ण होगा और उसे अपयश भी मिलेगा।

मुख्य बिंदु: – अर्जुन का यश उसके कर्तव्यों के प्रति उसकी निष्ठा का प्रमाण था। – स्वधर्म का पालन न करने पर यश की हानि निश्चित है। – युद्ध से पलायन का अर्थ है पाप का भागी बनना और नरक की ओर अग्रसर होना।

Bhagavad Gita:गीता अध्याय 2 श्लोक 34 अर्थ सहित – अकीर्तिं चापि भूतानि कथ