भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से अर्जुन को समझाते हैं कि एक क्षत्रिय का धर्म युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्यों का पालन करना है। वह कहते हैं कि एक सच्चे क्षत्रिय के लिए युद्ध का अवसर केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि स्वर्गलोक प्राप्ति का मार्ग भी हो सकता है। इस प्रकार, अर्जुन को युद्ध से विमुख होने के बजाय अपने धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया जाता है।