भगवद गीता का अध्याय 2, श्लोक 30 (Bhagwat Geeta Chapter 2 Shlok 30), में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि शरीर में रहने वाला आत्मा अमर है। इसे न तो कोई मार सकता है और न ही इसे कोई नष्ट कर सकता है।

इसलिए, अर्जुन को किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है। यह उपदेश उस समय दिया गया था जब अर्जुन अपने कर्तव्यों के पालन में संदेह की स्थिति में थे। युद्ध के मैदान में खड़े अर्जुन को यह भय था कि यदि वे युद्ध करेंगे, तो उनके पितामह भीष्म और गुरु द्रोण की मृत्यु निश्चित है।

श्लोक 2.30 देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत। तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि॥

शब्दार्थ देही - भौतिक शरीर का स्वामी नित्यम् - शाश्वत, सदा रहने वाला अवध्यः - जिसे मारा नहीं जा सकता अयम् - यह आत्मा देहे - शरीर में सर्वस्य - हर एक के भारत - हे भारतवंशी तस्मात् - अतः, इसलिए सर्वाणि - समस्त भूतानि - जीव, प्राणी - कभी नहीं त्वम् - तुम शोचितुम् - शोक करने के लिए अर्हसि - योग्य हो, उचित हो

Fill in some text

भावार्थ:

हे भारतवंशी! शरीर में रहने वाला (देही) कभी भी मारा नहीं जा सकता। इसलिए तुम्हें किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है।

श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से यह बताते हैं कि आत्मा सदा अमर और अविनाशी है। आत्मा का किसी भी प्रकार से वध नहीं किया जा सकता। यह शरीर के माध्यम से ही अपने कर्मों का अनुभव करती है। जब शरीर नष्ट होता है, तो आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसलिए, मृत्यु के समय शोक करना उचित नहीं है।

अर्जुन को उनके कर्तव्य से विमुख होने से रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने आत्मा की इस शाश्वतता का उपदेश दिया। उन्होंने अर्जुन से कहा कि एक योद्धा के रूप में उसका कर्तव्य है कि वह अपने धर्म का पालन करे और किसी भी प्रकार के मोह और शोक से मुक्त होकर युद्ध करे।

श्लोक का महत्व: इस श्लोक में आत्मा की अमरता को स्पष्ट रूप से बताया गया है। आत्मा का कभी नाश नहीं होता। यह शरीरों को बदलती है, जैसे कोई पुराने कपड़े को बदलकर नए कपड़े पहन लेता है।

कर्तव्य पालन का महत्व: अर्जुन को यह समझाया गया है कि एक क्षत्रिय का धर्म युद्ध करना है। उसे अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए। अगर वह युद्ध से पीछे हटता है, तो यह उसकी वीरता और कर्तव्यनिष्ठा का अपमान होगा।

विचारणीय बिंदु: आत्मा की शाश्वतता को समझकर जीवन के संघर्षों का सामना करना भगवान की आज्ञा के अनुसार कर्तव्य निभाना, न कि स्वेच्छा से हिंसा का चयन करना मृत्यु के भय से मुक्त होकर अपने कार्यों में निष्ठा रखना

Bhagavad Gita:गीता अध्याय 2 श्लोक 31 अर्थ सहित – स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न…..