इस श्लोक का भावार्थ यह है कि कोई व्यक्ति आत्मा को आश्चर्य के रूप में देखता है, कोई इसे अद्भुत मानकर वर्णन करता है, और कोई इसे सुनकर आश्चर्यचकित होता है। परंतु, इनमें से बहुत कम लोग ही इसे सही ढंग से समझ पाते हैं। आत्मा की सूक्ष्मता और उसकी अविनाशी प्रकृति को समझना साधारण नहीं है।