इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन और मृत्यु के सत्य से अवगत कराते हैं। वे कहते हैं कि सारे जीव पहले अव्यक्त (अदृश्य) अवस्था में रहते हैं, फिर वे जन्म लेकर व्यक्त (दृश्य) होते हैं, और मृत्यु के बाद पुनः अव्यक्त हो जाते हैं।

इसका अर्थ है कि जीवन का प्रारंभ और अंत दोनों ही अव्यक्त होते हैं, जबकि जन्म से मृत्यु के बीच का समय व्यक्त होता है। इसलिए इस चक्र के लिए शोक करने का कोई कारण नहीं है।

श्लोक: अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत | अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना || २८ ||

शब्दार्थ: अव्यक्त-आदीनि – प्रारम्भ में अप्रकट भूतानि – सारे प्राणी व्यक्त – प्रकट मध्यानि – मध्य में भारत – हे भरतवंशी अव्यक्त – अप्रकट निधनानि – विनाश होने पर एव – इस तरह से तत्र – अतः का – क्या परिदेवना – शोक

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भावार्थ

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन और मृत्यु के सत्य से अवगत कराते हैं। वे कहते हैं कि सारे जीव पहले अव्यक्त (अदृश्य) अवस्था में रहते हैं, फिर वे जन्म लेकर व्यक्त (दृश्य) होते हैं, और मृत्यु के बाद पुनः अव्यक्त हो जाते हैं।

तात्पर्य इस श्लोक का सार यही है कि जीवन और मृत्यु दोनों एक स्वाभाविक प्रक्रिया हैं। भगवान श्रीकृष्ण यहाँ अर्जुन के मन में व्याप्त शोक और मोह को दूर करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे हैं। चाहे हम आत्मा के अस्तित्व में विश्वास करते हों या न करते हों, किसी भी स्थिति में शोक का कोई कारण नहीं है।

जीवन और मृत्यु का प्राकृतिक चक्र श्रीकृष्ण ने इस श्लोक के माध्यम से जीवन और मृत्यु के प्राकृतिक चक्र की व्याख्या की है। उन्होंने बताया कि संसार के सभी प्राणी, जो हमें दिखाई देते हैं, वे पहले अदृश्य अवस्था में होते हैं। समय के साथ, वे जन्म लेते हैं और हमारे सामने प्रकट होते हैं। जब उनका शरीर समाप्त हो जाता है, तो वे फिर से अदृश्य हो जाते हैं।

अदृश्य से दृश्य की यात्रा: जीवन की शुरुआत अदृश्य अवस्था में होती है। इसके बाद, जन्म के समय, जीवन दृश्य होता है। अंत में, मृत्यु के बाद वह फिर से अदृश्य हो जाता है। यह एक ऐसा चक्र है जो सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए समान है।

भौतिक तत्वों का रूपांतरण: इस प्रक्रिया को समझने के लिए हम भौतिक तत्वों की उत्पत्ति को देख सकते हैं। जैसे: – आकाश से वायु उत्पन्न होती है। – वायु से अग्नि उत्पन्न होती है। – अग्नि से जल उत्पन्न होता है। – जल से पृथ्वी उत्पन्न होती है। – पृथ्वी से अनेक प्रकार के पदार्थ उत्पन्न होते हैं। यह प्रक्रिया हमें यह समझने में मदद करती है कि अदृश्य अवस्था से दृश्य अवस्था और फिर से अदृश्य अवस्था में लौटना एक प्राकृतिक नियम है।

शोक और मोह से मुक्ति श्रीकृष्ण का यह उपदेश अर्जुन को शोक और मोह से मुक्त करने के लिए है। युद्ध के मैदान में अपने सगे-संबंधियों के नाश की कल्पना से अर्जुन शोकग्रस्त थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें इस शाश्वत सत्य से अवगत कराया कि जीवन और मृत्यु का यह चक्र अवश्यंभावी है।

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