क्या आप जीवन की उलझनों से परेशान हैं?जानिए प्रेमानंद जी महाराज के विचार जो आपको शांति और संतुलन की राह दिखाएंगे।
परमात्मा का अंश हैं हमप्रेमानंद जी कहते हैं कि हर मनुष्य परमात्मा का अंश है, लेकिन हम खुद को सिर्फ शरीर और मन मानकर सीमित कर लेते हैं।
कर्ता नहीं, निमित्त मात्र बनेंअगर आप खुद को कर्ता मानते हैं तो आपको भोगना भी पड़ेगा। लेकिन यदि आप खुद को निमित्त मात्र मानें, तो जीवन शांत और सरल हो जाएगा।
Fill in some text
"निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्" का अर्थभगवद्गीता का यह श्लोक बताता है कि भगवान के कार्य में हमें सिर्फ माध्यम बनना चाहिए — न कि अहंकार से भरकर फल की अपेक्षा करना।
शुभ और अशुभ कर्मों का प्रभावशुभ कर्म स्वर्ग की ओर, अशुभ कर्म नरक की ओर और मिश्रित कर्म मृत्यु लोक की ओर ले जाते हैं। लेकिन इन सबसे ऊपर उठकर मोक्ष संभव है।
माया और गुणों की भूमिकाजीवन में जो भी हो रहा है वह प्रकृति के गुणों के अनुसार हो रहा है। माया ब्रह्म से प्रेरित होती है और हम सिर्फ एक माध्यम हैं।
अहंकार से मुक्ति का मार्गजब आप बार-बार सोचते हैं कि सब कुछ भगवान कर रहे हैं, तो काम, क्रोध और अहंकार आपसे दूर हो जाते हैं।
"एक पत्ता भी नहीं हिलता"प्रेमानंद जी बताते हैं कि भगवान की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। इस सत्य को जीवन में उतारिए।
केवल एक विचार पकड़ लीजिए — “मैं निमित्त मात्र हूं।” यह विचार ही आपको जीवन की सच्ची दिशा और आत्मिक शांति प्रदान करेगा।
प्रेमानंद जी महाराज के 9 विचार जो बदल सकते हैं आपका जीवन