क्या आप जानते हैं, जीवन में सुख-दुख क्यों आते हैं?
प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि जब तक हम खुद को कर्ता मानते हैं, तब तक दुख से मुक्ति नहीं मिलती।
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हम कौन हैं?
महाराज जी कहते हैं, हम परमात्मा का अंश हैं।
लेकिन हम खुद को केवल शरीर, मनुष्य या पुरुष मानते हैं — यही सबसे बड़ी भूल है।
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निमित्त मात्र का अर्थ
भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं — "निमित्त मात्रं भव सव्यसाचिन्"।
अर्थात् खुद को भगवान के कार्य का एक साधन मानो, कर्ता नहीं।
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कर्ता बनने का परिणाम
जो व्यक्ति खुद को कर्ता मानता है, उसे भोगना भी पड़ता है।
कर्मों का फल उसे ही भुगतना होता है — फिर चाहे वह सुख हो या दुख।
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कर्म और फल का रहस्य
महाराज जी समझाते हैं कि शुभ कर्म स्वर्ग की ओर ले जाते हैं,
अशुभ कर्म नरक में और मिश्रित कर्म मृत्यु लोक में वापस लाते हैं।
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कैसे बने जीवन मुक्त?
अगर आप हर कार्य में खुद को केवल निमित्त मान लें,
तो आप मोह, क्रोध, और लोभ से मुक्त हो जाएंगे — यही है जीवन मुक्ति।
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साधना से मिलता है अनुभव
भगवान को बुद्धि से नहीं जाना जा सकता।
उनका अनुभव केवल साधना, सेवा और शुद्ध आहार से ही संभव है।
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काम और क्रोध का अंत
जब आप हर पल सोचते हैं "मैं नहीं, भगवान ही कर्ता हैं",
तब काम, क्रोध और अहंकार अपने आप समाप्त हो जाते हैं।
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जीवन बदलने की कुंजी
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं —
"जिस दिन तुम खुद को निमित्त मात्र मान लोगे, उसी दिन परमात्मा को पाओगे।"
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प्रेमानंद जी महाराज के 9 विचार जो बदल सकते हैं आपका जीवन
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