क्या मोह और देह से जुड़ाव आपकी भक्ति में बाधा है? प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि जब तक मन बंटा रहेगा, तब तक ईश्वर से सच्चा जुड़ाव नहीं हो सकता। जानें उनके विचार। 

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मन एक है, प्रेम एक ही जगह हो अगर मन बहुत लोगों से जुड़ा है तो भगवान से प्रेम संभव नहीं। अपनों में प्रभु को देखने का अभ्यास करें। 

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अपनों से लगाव को कैसे बनाएं भक्ति? बेटे, पत्नी, माता-पिता—हर संबंध में ईश्वर को देखें। यही दृष्टिकोण मोह को भक्ति में बदल देता है।

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भगवान से विमुख होकर किया गया व्यवहार भक्ति नहीं प्रेमानंद जी कहते हैं—जब हर व्यवहार प्रभु को समर्पित हो, तभी वह सच्चा आध्यात्मिक आचरण बनता है।

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मोह त्यागें या उसे प्रभु में जोड़ दें अगर त्याग संभव न हो, तो हर लगाव में प्रभु को जोड़ दें। यही सरल और प्रभावी तरीका है।

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देह आसक्ति कैसे बनती है रुकावट? शरीर से लगाव आत्मा की उड़ान रोकता है। इसे सेवा और नाम जप से पवित्र किया जा सकता है। 

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सेवा से टूटती है देह की पकड़ घर, परिवार, पशु-पक्षी—सबकी सेवा शरीर को भगवान की ओर मोड़ देती है और मोह घटता है। 

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अपवित्र बनाम पवित्र आसक्ति भोग, देह और संबंधों से जुड़ी आसक्ति अपवित्र है। जबकि आत्मा और ईश्वर से जुड़ाव ही पवित्र आसक्ति है।

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भक्ति का मूल मंत्र: सेवा और समर्पण प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं—नाम जप, सेवा और प्रभु भाव ही मोह और देह बंधन से मुक्ति का मार्ग है।

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