आत्मज्ञान क्या है? आत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को पहचानना और अपने भीतर ईश्वर का अनुभव करना। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि यह अनुभव साधना और नाम जप से आता है।

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भूत, भविष्य और वर्तमान की उलझनें जब हम भजन करते हैं, तब भी मन भूतकाल की यादों और भविष्य की चिंताओं में उलझा रहता है। यही हमारे आत्मज्ञान की राह में रुकावट है। 

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गुरु मंत्र और ध्यान का असर गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का निरंतर जप करने से मन की चंचलता शांत होती है। राग, द्वेष, क्रोध और मोह जैसी वृत्तियां खत्म होने लगती हैं। 

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आत्मज्ञान के लिए क्या चाहिए? इसके लिए किसी विशेष आशीर्वाद की नहीं, बल्कि आत्म-प्रयास की जरूरत होती है। जो नाम मिला है, उसमें तन्मय होकर अभ्यास करें। 

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जब मन निर्मल होता है जब मन से विकार समाप्त होते हैं, तब भीतर से आनंद फूटता है। फिर संसार के भोग आकर्षित नहीं करते, और आत्मा में शांति मिलती है। 

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आत्माराम कौन होता है? जो व्यक्ति आत्मज्ञान पा लेता है, वह "आत्माराम" कहलाता है। वह कभी भ्रमित नहीं होता और हर परिस्थिति में स्थिर रहता है। 

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साधना में सावधानी जरूरी महाराज जी कहते हैं – साधना में 10 मिनट का भी मोह या मनोरंजन, वर्षों की तपस्या को खत्म कर सकता है। इसलिए ध्यान और अनुशासन जरूरी है। 

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काम और क्रोध से कैसे बचें? काम, क्रोध हर किसी के भीतर होते हैं। पर साधना से इन्हें कमजोर किया जा सकता है। इन्हें चिंगारी ही रहने दो, ज्वाला मत बनने दो। 

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यही है आत्मज्ञान की राह नाम जप, सेवा, साधना और शुद्ध भाव ही आत्मज्ञान का सच्चा रास्ता है। प्रेमानंद जी महाराज का मार्गदर्शन अमृत के समान है, बस उस पर चलना शुरू कीजिए। 

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