भगवान श्री कृष्ण का नाम आते ही उनके भक्त उनकी छवि, उनकी बांसुरी और उनके मुकुट में सजे मोरपंख की ओर आकर्षित होते हैं।

भगवान श्री कृष्ण के अनुयायी उनके प्रतीक के रूप में उनसे जुड़ी सभी वस्तुओं जैसे गाय, माखन, मिश्री और चक्र को भी पूजनीय मानते हैं।

लेकिन श्री कृष्ण से जुड़ी सभी वस्तुओं में  मोरपंख का विशेष स्थान है

Fill in some text

भगवान श्री कृष्ण का मोरपंख से अत्यंत घनिष्ठ संबंध था। कहते हैं कि मोरपंख, राधारानी के प्रति श्री कृष्ण के अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक था, जिसे वे सदैव अपने मुकुट में सजाए रखते थे।

माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण को राधारानी का नृत्य अत्यंत प्रिय था, और जब वे मोरों को नृत्य करते हुए देखते, तो उन्हें राधारानी की याद आती। श्री कृष्ण के लिए मोर राधारानी के प्रेम का प्रतीक बन गया, और इसी कारण वे मोर से भी बहुत प्रेम करते थे।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नृत्य करते हुए एक मोर का पंख धरती पर गिर पड़ा। श्री कृष्ण ने प्रेमपूर्वक उस मोरपंख को अपने सिर पर धारण कर लिया और तब से यह उनके मुकुट का अभिन्न हिस्सा बन गया।

एक अन्य कथा के अनुसार, त्रेतायुग में जब प्रभु राम सीता माता की खोज में भटक रहे थे, तब एक मोर ने अपनी पंख गिराकर उनके रास्ते को दिखाने में मदद की।

इस निःस्वार्थ सेवा के दौरान उस मोर के सारे पंख खत्म हो गए, और उसने बीच रास्ते में ही प्राण त्याग दिए।

श्री राम ने उस मोर को वरदान दिया कि अगले जन्म में वे उसके सम्मान में उसके पंख को अपने मुकुट में धारण करेंगे। इसी वरदान के फलस्वरूप, श्री कृष्ण ने अपने जीवनकाल में मोरपंख को अपने मुकुट में स्थान दिया।

Gopashtami 2024:गोपाष्टमी क्यों मनाते हैं? जाने इसकी कथा