शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। 

इस अवधि में यदि कोई जातक कोई मांगलिक कार्य करता है, तो उसे शुभ फलों की प्राप्ति के बजाय अशुभ घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।  

इसी कारण होलाष्टक के दिनों में विवाह, गृह प्रवेश या अन्य शुभ कार्य करने से बचना चाहिए। 

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होलाष्टक का धार्मिक महत्व  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक का संबंध भक्त प्रह्लाद और असुर राजा हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ा हुआ है। 

कथा के अनुसार, जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन थे, तब उनके पिता हिरण्यकश्यप ने उन्हें यह मार्ग छोड़ने के लिए मजबूर किया। लेकिन जब प्रह्लाद ने अपने ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास बनाए रखा, तो हिरण्यकश्यप ने उन्हें लगातार आठ दिनों तक कठोर यातनाएं दीं। 

इसके बावजूद, प्रह्लाद अपनी भक्ति से पीछे नहीं हटे। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अग्नि में बैठाकर भस्म कर दे। 

होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। 

लेकिन जब वह प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता में बैठी, तो भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका स्वयं आग में जलकर भस्म हो गई। 

मान्यता है कि इन आठ दिनों में प्रह्लाद को दी गई यातनाओं के कारण सभी ग्रह-नक्षत्र और देवी-देवता उग्र हो गए थे, जिसके चलते होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही है। यह समय नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में रहता है, इसलिए इस अवधि में शुभ कार्यों को टालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। 

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