कृष्ण पक्ष वह अवधि है जो पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक चलती है। यह 15 दिनों का समय चंद्रमा की घटती कलाओं से चिह्नित होता है, जिसमें चंद्रमा हर दिन थोड़ा-थोड़ा क्षीण होता जाता है, और उसका प्रकाश घटता है।

यह चंद्र मास का दूसरा चरण है। धार्मिक दृष्टि से इसे ध्यान, साधना और आत्मचिंतन का समय माना जाता है।

इस अवधि को अंधकार और शांति का प्रतीक माना जाता है, जो व्यक्ति को अपने जीवन के नकारात्मक पहलुओं पर चिंतन और सुधार का अवसर प्रदान करता है। इस पक्ष में पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।

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पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय मानी जाती है, इसलिए शुभ कार्यों से बचने की परंपरा प्रचलित है।

कृष्ण पक्ष में शुभ कार्य न करने की परंपरा ज्योतिषीय और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है।

क्यों नहीं होते शुभ कार्य?

इस अवधि को अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा का समय माना गया है, क्योंकि चंद्रमा का प्रकाश घटता है, जो शारीरिक और मानसिक ऊर्जा में कमी का प्रतीक है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय किए गए शुभ कार्यों में स्थायित्व और सफलता नहीं मिलती।

इसके साथ ही, यह समय पितरों को समर्पित श्राद्ध कर्म और तर्पण जैसे कार्यों के लिए निर्धारित है। आत्मचिंतन और आध्यात्मिक साधना के लिए इस काल को उपयुक्त माना जाता है।

हिंदू परंपरा में विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य चंद्रमा के उज्जवल और सकारात्मक चरण, अर्थात शुक्ल पक्ष में करना शुभ माना गया है।

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